Friday, January 24, 2014

स्मृति ...




कहते है कि ...
कल कभी आता ही नहीं
इसलिए कल आने वाले आज के
मुँहअँधेरों से पूछना है
कि तुमने भोर के तारे के पास से
कोई पुकार आते सुनी थी क्या
पूछे गए इस सुने-अनसुनेपन के
ठहरे हुए पलों की पीठिका से
चुपचाप ... कमरे की खिड़की से ...
सलाखों के पार
बीते हुए आज की
हथेली पर उतरता है
एक कौर भर आसमां ...

ऐसे ...
उतर आये
गहरे नीले आसमां के
डूबते हुए किसी छोर पर
कहीं कोई एक आँख है ... और ...
उसी आँख की दाहिनी कोर से
चतुर्भुज हो बैठी धरा पर
टपकती है न ... स्मृति ...
टप ... टप ... टप ...



~~~हेमा~~~

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पूरी बातों में रखे हुए अधूरेपन ...

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कि सोलह कलाओं के चौसठ खानों में
किन पाठों का पुनर्पाठ करते है सोलह श्रृंगारों में सज्जित
सोलह संस्कारों में बिंधे
सोलह आने सच के ढाई कदम ...
कि अँधियारे पाख और उजियारे पाख की
चौरस जबान की नोक पर रखे
आठ वर्गों के गुणनफल के दोहरेपन की उपज पर काबिज
सोलह मंत्रकों में हो सकती है
किसी सत्ता के कथा-पायों को थामे बैठी
बत्तीस पुतलियाँ .....................

... कि पूरी बातों में रखे हुए ढाई क़दमों में होते है कुछ अधूरेपन ...

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Sunday, January 19, 2014

क्योंकि कहा जाना एक जरूरी पहल है ...



माना कि बरसना-गरजना और
हमारी पीठ पर तड़ा-तड़ टूट कर
बरस जाना ...तुम्हारा स्वभाव ठहरा ...फिर भी ...
मेरी ही जड़ों पर पडी है जो
मेरी ही ...
चिंदी-चिंदी हुई
पीले फूलों की पीली पाँखुरियाँ ...

कि तुम्हारे प्रति है उनके मन में बेतरह क्रोध
अजन्मी रह गई छीमियों के लिए ...
तीन दिनों की
बारिश,आँधी-पानी और पाले के बाद निकली धूप से
झुकी हुई टेढ़ी कमर और
बेहद भारी, भीगी पलकों वाली
पलाई हुई, ठिठुरी सरसों ने
दबी जबान से ही सही

पर कहा ...
कि मेरे पीले मन में आ बैठी है
दुःख,उदासी और घोर निराशा ...




~~~हेमा~~~

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Tuesday, January 14, 2014

आसमां पर पीठ टिकाए एक जिद ...

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कहो और कहते रहो कि
प्रेम का रँग नीला है
कि आसमान है उसका वितान ...
तुम चाहो तो जिदिया सकते हो ...
जिदियाने पर हक है तुम्हारा ...

पर जिदियाने से कुछ होता नहीं है
जबकि तुमने सुन लिया था ...
कि मैंने कहा था ना
कि प्रेम का रँग हरा होता है ...

आखिर इश्क के रँग के ताउम्र
हरे रहने में कोई बुराई तो नहीं ...

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.... रात गये ठहरी हुई एक जिद ...
 
 
~~हेमा~~

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Saturday, January 4, 2014

ओरछा के हरदौल ...




राजाओं की हठधर्मिता एवं उनकी रानियों की विवशता की एक और कथा है जो पूरे बुदेलखंड में कही गाई और सुनी जाती है ...

यह कहानी बीर सिंह जू देव के पुत्र लाला हरदौल की कहानी है ...

ओरछा नरेश राजा जुझार सिंह के भाई लाला हरदौल और उनकी राजमहिषी चम्पावती की ...

दीवान हरदौल / लाला हरदौल ओरछा नरेश के छोटे भाई थे ... और अपने बड़े भाई के परम भक्त ...

बुंदेलों के साम्राज्य एवं ओरछा नरेश की विशिष्ट सुरक्षा के दृष्टिकोण से दीवान हरदौल ने ओरछा की राज सेना के अतिरिक्त अपनी एक अलग युद्ध वाहिनी तैयार की थी और उसके माध्यम से कई युद्ध लादे भी थे और जीते थे ... राजा जुझार सिंह एवं लाला हरदौल के मध्य अटूट विश्वास एवं अगाध प्रेम निर्मल बेतवा की तरह प्रवाहित था ...

राजमहिषी चम्पावती ,लाला हरदौल को पुत्रवत स्नेह करती थी ... लाला हरदौल उनकी आँखों के तारे थे ...

और लाला हरदौल अपनी भाभी माँ के चरणों में प्रण-प्राण से न्यौछावर थे ...

उस समय दिल्ली मुगलों की सत्ता का केंद्र थी और ओरछा , दीवान हरदौल एवं उनकी असीम शौर्य धारिणी युद्ध वाहिनी को अपने लिए खतरा जानते और मानते हुए उन पर मुग़ल सम्राट की निगाहें टेढ़ी थी ...

कहते है एक षड्यंत्र के अधीन राजा जुझार सिंह को मुगलिया सल्तनत ने दिल्ली आमंत्रित किया और उनकी राज महिषी एवं लाला हरदौल के संबधो के कलुष का विष उन्हें और उनके कानों को पिलाया गया ...

लाला हरदौल की ओरछा की एवं अपने परम प्रिय बड़े भाई ओरछा नरेश जुझार सिंह की अतिरिक्त चिन्तना में निर्मित की गई युद्ध वाहिनी ही उनके और उनके भाई के प्रेम के नाश का आधार बनी ...

मुगलिया सल्तनत ओरछा नरेश को यह विश्वास दिलाने में सफल हुई कि उनकी राजमहिषी चम्पावती एवं ओरछा की सत्ता के लोभ में ही लाला हरदौल ने यह महात्वाकांक्षी युद्धवाहिनी तैयार की है ...

ओरछा लौटते ही ओरछा नरेश ने राजमहिषी को बुला भेजा और पत्नीधर्म एवं चरित्र निष्ठा की प्रतिष्ठा के नाम पर उन्हें परीक्षित करने हेतु अपना घृणित प्रस्ताव उनके समक्ष रख दिया ...

कि यदि तुम मुझे प्रेम करती हो और अपने पत्नीधर्म में सत्यनिष्ठ हो तो तुम्हे हरदौल को अपने हाथों से विष दे कर उनकी ह्त्या करनी होगी ...

राजमहिषी के तमाम विरोध एवं याचनाएं पतिधर्म एवं राजाज्ञा के समक्ष निष्फल सिद्ध हुई ...

कहते है लाला हरदौल को रानी चम्पावती के हाथों की बनी उनके लाड़ से पगी खीर बेहद प्रिय थी ... राजमहिषी ने खीर में विष मिला कर उसका पात्र लाला हरदौल को अपने हाथो से दे दिया ...

कहते है कि इस षड्यंत्र और खीर में विष होने की सूचना लाला हरदौल को उनके गुप्तचरों ने पहले से ही दे दी थी ...
परन्तु उन्होंने अपने भाई अथवा रानी चम्पावती से प्रश्न तो दूर एक शब्द या एक दृष्टि भी न उठाई ...

और अपनी माँ समान राजमहिषी की अग्निपरीक्षा को प्रज्ज्वलित करने हेतु उन्होंने बिना किसी प्रश्न के ,अपने संबंधों की धवलता को स्थापित करने हेतु विष मिली पूरी खीर खा ली ...

कहते है राजा जुझार सिंह ने अपने द्वारा संपन्न इस हत्या का  सम्पूर्ण दृश्य अपनी आँखों से देखा ...

सम्पूर्ण विष भरी खीर खा लेने और उसके असर से तड़पते और मरते अपने  प्राण प्रिय भाई को देखने के पश्चात
ही उन्हें अपनी राजमहिषी के चरित्रवान एवं संबंधनिष्ठ होने पर यकीन आया ...

यह एक ही प्रसंग में दो विपरीत ध्रुवों पर प्रतिष्ठित दो तरह के राजपुरुषों की कथा है ... संबंधों एवं चरित्रनिष्ठा के नाम पर अपनी राजसत्ता के अधीन एक स्त्री को विवश कर जान लेने वाले हत्यारे राजपुरुष की और एक स्त्री के सम्मान एवं चरित्रप्रतिष्ठा पर अपने प्राण देने वाले राज पुरुष की ...

दोनों ही समर्थ और सत्तावान है ... पर एक सत्ताओं के उपभोग एवं दुरुपयोग का एवं दूसरा सत्ता एवं सामर्थ्य के उपयोग के फर्क का साक्षी है ...

कहते है लाला हरदौल अपनी बहन से बेहद स्नेह रखते थे सो वह उनके विवाह में अपनी मृत्योपरांत सशरीर उपस्थित थे तबसे बुंदेलखंड के प्रत्येक विवाह में हरदौल को भात भेजने/देने की परम्परा है ...

हरदौल के भात के गीत समस्त  बुंदेलखंड में गाये जाते है ... सिर्फ ओरछा ही नही वरन अन्य जगहों पर भी लाला हरदौल की चौकियां है ...

मुझे नहीं पता रानी चम्पावती ने इस घटना के बाद अपना बाकी का जीवन अपने पुत्रवत देवर की हत्या करने के अपराधबोध एवं मानसिक संत्रास के साथ कैसे जिया होगा ...

या अपने परम स्नेह के पात्र लाला हरदौल की हत्या करवाने वाले ओरछा नरेश, अपने स्वामी एवं पति के साथ
अपने संबंधों का निर्वहन कैसे किया होगा ...

मुद्दा ए विमर्श :- युग कोई भी रहा हो राजा कोई भी चरित्र के नाम पर स्त्रियों को प्रश्नांकित करना और उन्हें
विवश करना सत्ता चरित्र रहा है ... स्त्री का चरित्र ... स्त्री का चरित्र ... स्त्री का चरित्र ... आजीवन उसका पीछा
करता है ...

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