tag:blogger.com,1999:blog-80516506890455140962024-03-13T20:22:14.134+05:30प्रदक्षिणाहेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.comBlogger94125tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-58789818611363856832014-05-06T14:32:00.001+05:302014-10-24T12:18:06.155+05:30आखिर क्यों ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="mbs _5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<span style="font-size: large;">...................................<br /> ......................................</span><br />
<span style="font-size: large;"> आखिर क्या और कितना</span><br />
<span style="font-size: large;"> चाह सकती है</span><br />
<span style="font-size: large;"> बंद हथेली से कब का छूट चुकी उँगली सी देह वाली </span><br />
<span style="font-size: large;"> किसी पुरानी किताब की गंध में</span><br />
<span style="font-size: large;"> दबी पड़ी रह गई एक सिल्वर-फिश ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> कि बस बहुत थोड़ी सी ही तो</span><br />
<span style="font-size: large;"> जरूरतें हुआ करती हैं ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> देखो वह और उतनी भी नहीं देखी और सुनी जाती है ...</span><br />
<span style="font-size: large;"> क्यों किसलिए दौड़े चले चले जा रहे हो ...</span><br />
<span style="font-size: large;"> कहाँ के लिए ...</span><br />
<span style="font-size: large;"> किसके लिए ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> अपने-अपने हिस्से के<br /> सच्चे झूठों की भुरभुरी पीठ पर लदे<br /> अपने से अजनबी और बेहद अनजान ...</span><br />
<span style="font-size: large;"> ठहरते हैं हम ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /> ठीक उस क्षण -<br /> जब अपने-अपने शवासनों के भीतर<br /> मरे हुए आदमी के स्वांग से उकता कर<br /> कोई ...<br /> सचमुच ही उठ कर<br /> शव में तब्दील हो जाता है ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> ... कि अंततः छूट ही जाना होता है ...</span><br />
<span style="font-size: large;"> ........ क्यों जाना आखिर ऐसे ही जाना होता है ...</span><br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;"> ............. हेमा</span></div>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-7030050349833600582014-04-19T12:23:00.001+05:302014-04-19T12:24:20.600+05:30 एक अधिकार अपने साथ दस दायित्व भी लाता है ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="mbs _5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}">
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">ब्लॉग के मोडरेटर लोग काहे बात के लिए होते है ... </span><br />
<span style="font-size: large;"> खाली लेखकों से तमाम विषयों पर लेखन सामग्री जुटाने और अपने ब्लॉग पर चेंपने भर के लिए ... </span><br />
<span style="font-size: large;">
जो मिला जैसा मिला चेंप दिया और परोस दिया ... पाठक तो पढने को तरसा-टपका
और भूखा बैठा है न ... और आप उस पर उसकी थाली में खाना फेंकने का अहसान
करते है न ...</span><br />
<span style="font-size: large;"> अक्सर ही वहां प्रस्तुत आलेखों, कविताओं,कहानियों,
अनुवादों में वर्तनी और व्याकरण की बेहद गंभीर त्रुटियाँ विद्यमान होती है
... जो उन्हें पढने के प्रवाह और अर्थान्वयन दोनों में व्यवधान उत्पन्न
करती है ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> क्या किसी के मन में यह सवाल नहीं उठता कि नेट के
द्वारा उच्च तकनीक से संचालित इन ब्लोग्स और ई-पत्रिकाओं में ऐसा नही होना
चाहिए ... यह कोई एक बार प्रिंट सो प्रिंट वाला मुद्दा नही है ... यह किसी
भी समय अपने को संपादित कर सकते है ... पर नही करते है क्यों ... </span><br />
<span style="font-size: large;"> यह एक बहुत बड़ा सवाल है कि इन्हें पाठकों की और अशुद्ध पाठ के अपने ही ब्लॉग पर मौजूद होने की जरा भी चिन्तना क्यों नही होती ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><span data-ft="{"tn":"K"}" data-reactid=".ey.1:3:1:$comment729786000418164_6880965:0.0.$right.0.$left.0.0.0:$comment-body" dir="ltr"><span class="UFICommentBody" data-reactid=".ey.1:3:1:$comment729786000418164_6880965:0.0.$right.0.$left.0.0.0:$comment-body.0"><span data-reactid=".ey.1:3:1:$comment729786000418164_6880965:0.0.$right.0.$left.0.0.0:$comment-body.0.$end:0:$0:0">भाषा और मात्राऔं की त्रुटियां तो कोई मायने ही न रखती हों जैसे.. और पुनरावलोकन तो कभी कोई करता ही नहीं...</span></span></span><span data-ft="{"tn":"K"}" data-reactid=".ey.1:3:1:$comment729786000418164_6880957:0.0.$right.0.$left.0.0.0:$comment-body" dir="ltr"><span class="UFICommentBody" data-reactid=".ey.1:3:1:$comment729786000418164_6880957:0.0.$right.0.$left.0.0.0:$comment-body.0"><span data-reactid=".ey.1:3:1:$comment729786000418164_6880957:0.0.$right.0.$left.0.0.0:$comment-body.0.$end:0:$0:0"> एक बड़ा सवाल यह है कि लेखक के चूकने पर सुधार के सारे अधिकार और दायित्व किसके होंगे ...</span></span></span></span><br />
<span style="font-size: large;">
उस सामग्री को अपने उस स्थापित किये ब्लॉग पर चिपकाने से पूर्व क्या उनका
इतना भी दायित्व नही बनता कि वह लेखकों द्वारा की गई वर्तनी और व्याकरण की
बेहद मामूली, प्रत्यक्ष और प्रथम दृष्टया ही दिखाई पड़ती त्रुटियों को भी
दूर करने का साधारण सा प्रयास कर ले ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> बस मोडरेटर हो जाना और ब्लॉग में सामग्री लगाना भर उनकी अधिकार सीमा है ...</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">ब्लॉग एक बड़ी और स्थापित पत्रिका से कहीं अधिक बड़ी भूमिका अदा कर सकते है ... </span><br />
<span style="font-size: large;">जो ब्लॉग साहित्यिक पत्रिकाओं की तरह चलाए जा रहे है उनके दायित्व साहित्यिक सरोकारों से परे नहीं हो सकते ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> एक बार सोच और समझ कर देखे कि उनकी यह लापरवाही पाठक और साहित्य के साथ क्या कहलाएगी ...</span></div>
<div class="_5pcp _5vsi">
<span style="font-size: large;"><br /><a class="share_action_link" data-ft="{"tn":"J","type":25}" href="https://www.facebook.com/ajax/sharer/?s=22&appid=25554907596&p%5B0%5D=100001603111783&p%5B1%5D=729786000418164&share_source_type=unknown" rel="dialog" role="button" title="इसे मित्रों को भेजें या इसे अपनी टाइमलाइन पर पोस्ट करें."> </a></span></div>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-53319922435687233242014-04-19T11:34:00.001+05:302014-04-19T13:18:23.043+05:30रानी की कहानी ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJWm_NIReOtb4a2Nq6pnom9nKIM_SXqNTfabuxx2s2UfZmau2G8L5YskhPt1qIZVo9HhxTd3hEGo7hqDu9L6zXhOYiENQqwPGTFasL5KZOXwp8ygLKjAvtc0w6_hIFZlptK9KA5oVKk-Hw/s1600/DSCN0978.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJWm_NIReOtb4a2Nq6pnom9nKIM_SXqNTfabuxx2s2UfZmau2G8L5YskhPt1qIZVo9HhxTd3hEGo7hqDu9L6zXhOYiENQqwPGTFasL5KZOXwp8ygLKjAvtc0w6_hIFZlptK9KA5oVKk-Hw/s1600/DSCN0978.JPG" height="480" width="640" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span class="userContent" style="font-size: large;">यह भव्य मंदिर बुंदेलों की राजधानी ओरछा स्थित चतुर्भुज मंदिर है भक्तों से सूना ... <br /> <br /> घंटनाद एवं आरती-पूजन ध्वनियों से बिलकुल अछूता सा निर्जन ... <br /> <br /> यहाँ जाने पर मुझे सुबह-सुबह पुजारी भी नहीं मिले इसमें स्थापित विष्णु प्रतिमा तकरीबन उपेक्षित स<span class="text_exposed_show">ी ही है ...<br /> <br /> इस मंदिर के ठीक बगल में रनिवास है ... रानी गनेशी बाई / रानी गनेश गौरी का रनिवास ... <br /> <br /> यह रनिवास ही वर्तमान में राम राजा मंदिर ओरछा के नाम से विख्यात है ... <br /> <br />
चतुर्भुज मंदिर अपने बनने के पश्चात लम्बे अरसे तक बिना किसी देव-प्रतिमा
एवं पूजा-अर्चना के यूँही पड़ा रहा उपेक्षित ... राजाओं की हठधर्मिताओं की
एक कथा है जो मैंने वहाँ सुनी और उसकी परिणति भी देखी ... <br /> <br /> कहते
है कि रानी गनेशी बाई भगवान् राम की बहुत बड़ी भक्त थी वो उनके अराध्य थे
... और वह प्रत्येक वर्ष अयोध्या उनके दर्शनों के लिए जाया करती थी ...<br /> <br />
परन्तु ओरछा नरेश मधुकर शाह कृष्ण भगवान् के परम भक्त थे वो उनके अराध्य
थे और वह प्रत्येक वर्ष उनके दर्शनों हेतु मथुरा-वृन्दावन जाया करते थे ...<br /> <br /> तो एक वर्ष ओरछा नरेश हठ पर उतरे कि रानी उनके साथ वृदावन चले उनके अराध्य कृष्ण की अराधना और दर्शनों हेतु ...<br /> <br />
रानी ने कहा कि वह अपना अयोध्या जाने का क्रम भंग नही करना चाहती है और वे
अपने इष्ट के दर्शनों हेतु अयोध्या अवश्य जायेंगी ... रानी के ऐसे
स्वतंत्र और स्वायत्त वचन राजा को क्रोधित करने हेतु पर्याप्त थे ...
उन्होंने रानी से कहा ठीक है जाओ और अब तुम अयोध्या ही जाओगी ... परन्तु
वहां से ओरछा तब ही वापस आ सकोगी जब अपने इष्ट राम को अपनी गोद में बाल रूप
में ले कर आओगी ...<br /> <br /> ओरछा नरेश का मधुकर शाह का यह फरमान रानी के लिए एक प्रकार से उनसे सम्बन्ध-विच्छेद एवं ओरछा से निकाला ही था ...<br /> <br />
कहते है दुखी एवं बेहद निराश रानी अयोध्या चली गई और वहां उन्होंने सरयू
के किनारे कठोर तप किया परन्तु उनके इष्ट न आज प्रगट हुए न कल ... <br /> <br /> जीवन, जगत और ओरछा तीनों से ही लगभग निष्काषित हताश रानी अपने प्राण त्यागने हेतु सरयू में कूद गई ...<br /> <br />
कहा जाता है कि उन्हें नदी के प्रवाह में से निकालने के लिए जो लोग कूदें
उन्होंने रानी को भगवान् राम के बालक रूप के साथ पाया और दोनों को बाहर
निकाला ...<br /> <br /> कहते है कि बाल राम ने रानी के साथ ओरछा आने की कुछ
शर्ते रखी थी जिनमें से एक यह थी कि वह ओरछा में रहेंगे तो वही ओरछा में
'राम-राजा' कहलायेंगे अर्थात ओरछा के नरेश राम-राजा ...<br /> <br /> दूसरी यह कि रानी एक बार उन्हें जहाँ रख देंगी वह वही आसीन हो जायेंगे ...<br /> <br />
रानी उन्हें अपने साथ लेकर पूरी शान से ओरछा वापस आई और ओरछा नरेश से मिली
... ओरछा नरेश उनके अराध्य के बाल रूप पर और उनकी निष्ठा के समक्ष नत हुए
...<br /> <br /> उन्होंने रानी से कहा कि मैं एक भव्य मंदिर प्रभु राम की स्थापना हेतु बनवाता हूँ तब तक तुम इन्हें रनिवास में रहने दो ...<br /> <br /> रानी प्रसन्नता पूर्वक राजी हो गई ... प्रभु की पूजा-अर्चना और भोग रानी के शयनकक्ष में होने लगे ...<br /> भव्य चतुर्भुज मंदिर बनकर तैयार होने पर प्रभु अपने वचनानुसार अपने प्रथम आसीन गृह से टस से मस नही हुए ... <br /> <br /> ओरछा नरेश की सत्ता भव्यता के प्रतीक चतुर्भुज मंदिर को कभी भी आबाद कराने में समर्थ न हो सकी ...<br /> <br />
ओरछा नरेश की प्रभुता सम्पन्नता उनके शयनकक्ष को ही उसी देव का होने से न
रोक सकी जिनकी आराध्या होने के लिए उन्होंने अपनी राजमहिषी को अपने शासित
राज्य से लगभग निष्काषित कर दिया था ...<br /> <br /> जिस रनिवास एवं
शयनकक्ष में सिर्फ ओरछा नरेश ही प्रवेश पा सकते थे ... उस समय के चलन को
ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि परिंदे को भी रनिवास में पर मारने से
पहले राजाज्ञा लेनी पड़ती होगी ... वहाँ ओरछा के राम-राजा बैठ गए थे ... और
उनके जरिये अति साधारण प्रजाजन भी प्रवेश पा गए थे ... वहां अब ओरछाधीश
राम-राजा सरकार अपनी सम्पूर्ण सत्ता में विराजे थे/है ...<br /> <br /> <br /> मुद्दा-ए-विमर्श : कौन जाने शर्ते प्रभु की थी या फिर प्रभु की ओट में ओरछा नरेश की राजाज्ञा से <br /> ________________________________________________________________<br /> <br /> पीड़ित रानी की ...<br /> ________________</span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-72395319997202664992014-04-19T11:18:00.000+05:302014-04-19T11:19:28.409+05:30डुबकियों के बहाने से ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVVz-F1RE3rVIjXSKg-WKKcXbYd5UHoJMA9N5T0c4RbE6snv7UwqbNjjSjszlHWEP-uHqMWPayMQGCXT35CBO_NM_rVNWT3YBwV8SeOWrU7yxnCak48nA3DGNYtKFaGJdSmJgscnogxfrA/s1600/IMG_20140317_203151.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVVz-F1RE3rVIjXSKg-WKKcXbYd5UHoJMA9N5T0c4RbE6snv7UwqbNjjSjszlHWEP-uHqMWPayMQGCXT35CBO_NM_rVNWT3YBwV8SeOWrU7yxnCak48nA3DGNYtKFaGJdSmJgscnogxfrA/s1600/IMG_20140317_203151.jpg" height="320" width="240" /></a><span style="font-size: large;"><span class="userContent">.... तो देखिये हुआ यूँ कि पानी तो था बहुत ठंडा
... इस मौसम में भी कुल्फी जमाने के लिए पर्याप्त ... लेकिन बयाना तो हम
ले ही गए थे डुबकने का ... <br /> सो हमने सब दोस्तों के नाम की तीन सामूहिक डुबकियाँ लगाई ... <br /> <br /> तीन इसलिए कि एक तो हम थोड़े नालायक <span class="text_exposed_show">प्रकार
के है ... बचपन से मनाही रही कोई भी शुभ काम तीन बार नहीं करना है ... तो
हम बहुत सारे काम तीन ही बार करते चले आ रहे है ... जैसे हम सब्जी में
नमक,हल्दी,मिर्च,अदि सभी कुछ तीन बार डालते है ... <br /> <br /> दाल-चावल
तीन-तीन मुट्ठी निकालेंगे ... चाय में पत्ती,चीनी दूध, पानी सब ही ऐसे पड़ती
है कि तीन बार हो ही जाए ... एक वक़्त में घर में बनाई जाने वाली १२ रोटी
की जगह तेरह रोटी बनाई जाती है ... <br /> <br /> अधिकाँश कामों को जिनमें
शुभ-अशुभ के विचार से सँख्या योग के हिसाब से कार्य करने होते थे सब मैंने
बिगाड़ कर रखे ... सब्जी दाल चावल हर चीज दोहरा कर परोसने की हिदायत हुआ
करती थी ... पर आदत और हठ ऐसी ठहर गई थी कि सब तीन ही बार परोसे जाते थे
... <br /> डांट ,धौल-धप्पे गाहे-बगाहे चलते रहे पर हम यह शुभ-अशुभ के हर
विचार का तियाँ-पाँचा कर ही डालते थे और आज तक हर चीज़ में तीन-तेरह कर ही
देते है ... <br /> <br /> अरे हाँ संदेशिया बक्से में दो मित्रों के अनुरोध थे उनके नाम पर प्रसाद लाने के और चढाने के ...<br />
सो आज मौका पड़ा है तो बता देते है कि मंदिरों में हमारा आना-जाना हमने
अपनी किशोरावस्था में ही प्रसाद और फूल-पत्ती की डलिया-दुन्नैया के साथ
स्वत: प्रेरणा से बंद कर दिया था ... मंदिरों की भीड़-भाड़ में होने वाली
अनुचित छेड़-छाड़ और नोच-खसोट की दुर्दशा से बचने के लिए उठाया गया यह कदम
मेरी आज की गढ़न में एक बेहद अहम् एवं आधारभूत कदम सिद्ध हुआ ... <br /> <br /> भव्य-खूबसूरत मोहिनी मूर्तियों, उनके स्थापत्य आदि के दर्शनों के लिए जरूर जाते है ... <br /> हाँ उनसे जुड़ी कहानियाँ इत्यादि भी हमें खूब भाती है ...<br /> <br />
अत: आप अपनी श्रृद्धा से मुझे पापी दोस्त की श्रेणी में रख सकते है ...
इसका मैं कभी बुरा नहीं मानने वाली ... पर हम किसी भी मंदिर में पूजा या
मनोकामना की दृष्टि से कभी भी नहीं जाते ... और प्रसाद आदि नही चढाते है तो
लाने का सवाल भी नहीं उठता ...<br /> <br /> वैसे ज्यादा बड़ी पोस्ट दो-चार दिन रुक कर लिखेंगे ...<br />
आज तो बस इतना बताए देते है कि हरि-द्वार में इस बार पहुँचने पर हमने देखा
कि धर्म और मोक्ष के नाम पर किसी शहर को किस कदर रौंदा जा सकता है ... और
तकरीबन मौत के घाट कैसे उतारा जा सकता है ...<br /> <br /> यह तस्वीर रात लगभग
साढ़े दस बजे की है दिन भर और शाम में भी पूरनमासी (पूर्णिमा) स्नान के कारण
बेहद भीड़ थी और मैं ऐसे विशिष्ट अवसरों या त्योहारों आदि पर धामिक स्थलों
या घाटों पर कतई नही जाती हूँ ... अनुभवों ने सिखाया कि बचाव ,तकलीफ मोल ले
लेने पर निदान से बेहतर है ...</span></span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-29721209298653100302014-04-19T11:13:00.002+05:302014-04-19T11:13:43.012+05:30आज हमारे शब्दों पर भाषा पर खूब जाएँ ... जो लिखा है उसके एक-एक शब्द का अर्थ वो ही है जो आपने समझा है ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_1_n fsm fwn fcg">
<span style="font-size: large;"><a class="uiLinkSubtle" href="https://www.facebook.com/hema.dixit/posts/721577974572300?stream_ref=10"><abbr data-utime="1393482352" title="26 फ़रवरी 2014 पर 10:25 अपराह्न">26 फ़रवरी</abbr></a> · </span></div>
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><br /> </span></span><br />
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><br /> एक लेखक और लेखिका साथ खड़े हो कर दो चार बाते कर लिए ...<br /> <br /> एक प्रकाशक और लेखिका साथ खड़े हो कर बतिया और दो चार बार मुस्कुरा लिए ... <br /> <br /> एक लेखिका अपने मित्रों और पाठकों से हाथ मिला ली एकाध लोगो से गले मिल ली ...<br /> <br /> एक नवोदित लेखिका अपने दूर दराज के शहर से आये लेखक मित्र के<span class="text_exposed_show"> लिए खाना ले आई ...<br /> <br /> पहली बार मिले फेसबुक लेखक-लेखिकाएं साथ बैठ कर चाय-शाय पी लिए ...<br /> <br /> प्रकाशक-लेखक-फेसबुक मित्रों के साथ लेखिकाओं ने मुस्कुरा कर अगल-बगल खड़े हो कर कंधे पर हाथ रख कर तस्वीरें खिंचवा ली ... <br /> <br />
बरसों से सोशल मीडिया पर रोज दिन में पिच्चासी बार एक दूसरे से मिलने और
जीवन की हर छोटी बड़ी बात में साझीदार होने के बाद मिलने पर हुलस कर हाथ थाम
लेना ... या उमड़ कर गले लग जाना ...<br /> <br /> यह सब आपसे देखा नहीं न जा रहा है तो अपनी आँखे बंद कर लीजिये ...<br /> <br /> आप बड़े साहित्यकार होंगे अपने घर के ...<br /> <br />
अपनी इतर संबंधों और दोनों के बीच कुछ तो चल रहा है वाली गलीज सोच की नाक
दो इंसानों के खूबसूरत संबंधों में स्त्री-पुरुष के खाके के नाम पर न ही
घुसाए तो बेहतर होगा ... <br /> <br /> दो लोगो को दो बेहतरीन इंसानों की तरह खुल कर खिल कर मिलने दें ...<br /> <br />
और हाँ यदि आप अपनी सोच बदलेंगे नहीं और यह इतर संबंधों की खिचड़ी पकाने
वाली और अपनी गपडचौथ का रायता फैलाने की ठेकेदारी उठाने वाली नाक की लम्बाई
कम नहीं करेंगे और ऐसे ही घुसाते रहेंगे ...<br /> <br /> तो बताए देते है जिस
रोज मेरे हत्थे चढ़ गए ... आपकी यह ठेकेदारी वाली नाक तोड़ देंगे और पटक कर
मारेंगे सो अलग ... वो भी फेसबुक की पोस्ट पर आभासी तौर पर नहीं ...
दुनियां के 'मेले' में बीचों-बीच ...</span></span><span class="text_exposed_show"><span class="userContentSecondary fcg"> — <img alt="" class="_agk img" height="16" src="https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/yF/r/E_XTR7JiTK1.png" width="16" />दुनियां में अपने दम पर कायम है ... आपके पिताजी का दिया नहीं खाते है ... महसूस कर रही है...</span></span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-42951754217069966312014-04-19T11:04:00.002+05:302014-04-19T11:04:53.221+05:30कच्चा-पक्का ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_1x1">
<div class="userContentWrapper">
<div class="_wk">
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"> </span></span></div>
<div class="_wk">
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"> </span></span></div>
<div class="_wk">
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">विवाहित
स्त्रियों को जन्म-जन्मान्तर के संबंध की अवधारणा पकड़ा दी गई है ... सात
जन्मों के पक्के से पक्के वाले संबंध की ... और उसी की कामना के लपेटे में
चीज़ों को देखने की आँख ... <br /> अगले पल का इस जीवन में आपको पता और उस पर नियंत्रण नहीं होता ... अगला जनम तो बहुत दूर की कौड़ी है ... <br />
इस जन्म के जिए जा रहे पलों को तमीज़ से इंसानों की तरह जीते हुए ये कहने
की हिम्मत ले आओ कि "यही तुम्हारा सातवाँ जनम है ... तुम सारे जन्मों से भर
पाई अब तरने की इच्छा है ..." </span><span class="userContentSecondary fcg"> — <img alt="" class="_agk img" height="16" src="https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/ya/r/Y9tPoK83yNZ.png" width="16" />निन्यानवे का फेर ... महसूस कर रही है.</span></span></div>
</div>
</div>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-58995268768731748902014-04-19T10:52:00.001+05:302014-04-19T10:52:46.659+05:30चिंता ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">भविष्य
के इतिहास की कोई एक पंक्ति ऐसे लिखी जायेगी ,"कभी पृथ्वी पर बेहद कोमल
हृदय वाली एक प्रजाति हुआ करती थी जिसको स्त्री के नाम से जाना जाता था ...
अत्यधिक दोहन, सतत उपेक्षा, अनाचार एवं पितृसत्ताओं की 'गलतियों' के
भुगतमान के चलते वह विलुप्त हो गई ." ...</span><span class="userContentSecondary fcg"> </span></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><span class="userContentSecondary fcg">— <img alt="" class="_agk img" height="16" src="https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/yC/r/eUi3vObIczv.png" width="16" />खतरें में पडी विलुप्तप्राय प्रजाति ... महसूस कर रही है ...</span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-37605686860836296842014-03-08T18:06:00.001+05:302014-03-08T18:06:47.001+05:30हिन्दी साहित्य में नव-विभाजन ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">अब सिर्फ दो काल होंगे फेसबुक से पहले वाला ...<br /> और फेसबुक के साथ और बाद वाला ... <br /> स्त्री दिवस पर एक घोषणा ...</span></span><br />
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"> </span></span><span class="userContentSecondary fcg"><span style="font-size: large;"> — <img alt="" class="_agk img" height="16" src="https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/yu/r/8bZ4GFL95Nu.png" width="16" />यह हो चुका है इसे रोकना तुम्हारे बस की बात नहीं है</span> </span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-90833342989980514912014-02-11T13:57:00.000+05:302014-02-11T13:57:35.842+05:30आमी जाज़ोबर ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<span style="font-size: large;">हर शहर में घर सा मेरा एक ठिया होना चाहिए ... <br /> आज, कल ,परसों या बरसों में -<span class="text_exposed_show"><br /> जब कभी भी मैं पहुँच पाऊं मेरे इन्तजार में बैठा हुआ सा ...<br /> <br /> मुझे होटल कभी रास नहीं आये ...<br /> <br /> बेगाने , ठन्डे , हाथों वालें कमरें , बेजान रंगों झूठ बोलती तस्वीरों वाली दरों-दीवारें ...<br /> मुझ से मुसाफिर को प्लास्टिक के फूल ,पोलीथिन में भरे स्वाद ,रिश्ते और छायाएँ रास आने भी क्यों चाहिए ...<br /> <br /> कौन जाने फिर मुझे अजनबी शहर क्यों ऐसे इस तरह और इतना रास आते है ...<br /> <br />
उनकी सड़के ,गलियां ,नदी ,तालाब, घर, लोग पीठ पर बस्ता टाँगे स्कूल जाते
लौटते ताज़ा-निचुड़े बच्चे , बस स्टॉप, गाड़ियाँ, दुकाने, बाजार, अलग-अलग
नामधारी चौराहे,तिराहे ओवेरब्रिज , तीखे मोड़ , काली-सफ़ेद धारों पर भागते
पैदल राही, गाय-गोबर और अपना इलाका पार करा कर विदा कहते दुश्मन से दोस्त
कुत्ते, बालकनी और छज्जों पर सूखते तमाम रंगों का आईना दिखाते कपड़े , मुंह
उठा मुझे ताकते गमले और पौधे , भागते रास्तों पर यूँही पड़ जाते पार्क और
सूखे मालों के साथ घाम तापती मूर्तियाँ ... गौर से देखते मुस्कुरा उठते
हुए मैं क्या खोज सकती हूँ ... <br /> <br /> कैसे बता सकती हूँ शब्दों में
मैं कि किसी ऐंठी हुई लकड़ी की बेंच पर बैठ चाय का हलके हरे शीशे वाला ग्लास
हाथ में लेते ही उसकी उठती हुई भाप की लकीर कैसे मुझे कभी जंगल में बसे
रहे उस बेंच के घर तक ले जाती है ... घर ... उसका घर ... गहन ... घनी हरी
ठन्डी छाँव वाला घर ... <br /> <br /> ... कमरे में आई ... फ्लास्क में बंद चाय ... होटल के प्यालों की चाय कहीं नहीं ले जाती<br /> <br />
लोगो ,जगहों और चीजों को सुबह-शाम के श्वेत-श्याम तस्वीर के फ्रेम में
ठहरा कर देखने के लिए कुछ दिन और कुछ लम्हों के झोले कितने छोटे पड़ते है
मुझे ... <br /> <br /> हाथों की दुनैय्या के नीचे से तेज धूप में चमचमाते आसमान और झिलमिलाते पेड़ों की छतों पर पलके उठा कर आँखों के रास्ते दौड़ जाना ... <br /> <br />
अपनी एक यात्रा पर निकलना अपने नजरिये से उसकी इमारतों,उसके लोगो, उसकी
दौड़ती-भागती हलचलों-धडकनों को एफ.एम. की तरह अपनी सोची हुई तर्जों पर
गुनगुना कर देखना और अपने साथ चलते हुए बजते रहने के लिए छोड़ देना ... <br /> <br /> कितना अच्छा है न किसी शहर के जूतों में अपने पाँव घुसाना ...<br /> <br /> उसके भूत ... भविष्य ... और वर्तमान में ऐसे और इतना उतरना कि सब अपना हो जाए ... <br />
वो बेगानेपन से अपनी किसी इमारत का ऊँचा सर झुका कर मुझे न देखे एक अजनबी
आँख से ... और न पूछ सके तुम कौन ... कहाँ से आये हो ... क्या काम है यहाँ
तुम्हारा ... <br /> मुझे कैसे तो भी लाख सर पटकने पर भी पराया न घोषित कर सके ... <br /> <br /> एक शहर के सपनो की आँख में उतरना ... <br /> <br /> ऐसे जैसे पलकों के नीचे बैठे काजल की एक फ़ैली हुई रेखा ...<br /> <br /> मुझे पता है शहर और जगहें मेरा इन्तजार करते है ...<br /> <br /> अपने कमरे में मौजूद हूँ ... पर कंधे पर अपना नामौजूद बैग हर पल टाँगे बस एक मुसाफिर ही हूँ मैं ...<br /> <br /> मुझे हर शहर में अपना एक छोटा सा हिस्सा ही तो चाहिए बस ... <br /> <br /> सुनते है कि दिल्ली भी एक शहर है ...</span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-45983138753760542642014-02-03T12:33:00.002+05:302014-02-03T12:35:25.102+05:30बाधा दौड़ के प्रतिभागी ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">इस थोथे समाज ने स्त्रियों को अधिकार के नाम पर क्या दिया है -<br /><br />सिर्फ समर्पित होने का अधिकार हर चीज हर बात में हर रिश्तें में ...<br /><br />एक स्त्री को इस समाज में एक बेहद मामूली सा, कोई गलती करने का या किसी स्तर पर चूक जाने का अधिकार तक नहीं दिया गया है ...<br /><br />लानत है ऐसे दुष्चक्र पर जो एक स्त्री या लड़की के कहीं भी कभी भी चूकते या गलती करते उसे निगल जाने को दौड़ पड़ता है ...<br /><br />हज़ार तमगे, उसके चरित्र की परम्परागत चलनहारी परिभाषाओं के अधीन उसकी पूरी उपस्थिति को नकारते हुए पहना दिये जाते है ...<br /><br />क्यों स्त्रियों और लड़कियों की गलतियाँ, अपराधों की तरह उनके सर माथे रख दी जाती है ...<br /><br />क्यों उनकी चूकों को उनकी शर्मिदगी बना कर ,उन्हें चुप हो कर कोने-कतरों में छुप कर बैठने की राह दिखाई जाती है ...<br /><br />माफ कीजिये, बाकी अधिकार देना और सहधर्मी होना तो बहुत बाद की बात है पहले उनके गलती करने और चूकने के प्राथमिक अधिकार को देखना ही सीख लीजिये ...<br /><br />और हाँ एक बात और यह अधिकार अगर आप देखना नहीं सीखेंगे तो बहुत जल्द बहुत थोड़े ही समय में आप कहीं बहुत पीछे छूट जायेंगे ... </span><br />
<br />
<br />
<br /></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-74867832596640379812014-01-24T20:35:00.004+05:302014-01-24T20:35:58.744+05:30स्मृति ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">कहते है कि ...<br /> कल कभी आता ही नहीं <br /> इसलिए कल आने वाले आज के <br /> मुँहअँधेरों से पूछना है <br /> कि तुमने भोर के तारे के पास से <br /> कोई पुकार आते सुनी थी क्या <br /> पूछे गए इस सुने-अनसुनेपन के <br /> ठहरे हुए पलों की पीठिका से <br /> चुपचाप ... कमरे की खिड़की से ...<br /> सलाखों के पार <span class="text_exposed_show"><br /> बीते हुए आज की <br /> हथेली पर उतरता है <br /> एक कौर भर आसमां ... <br /> <br /> ऐसे ...<br /> उतर आये <br /> गहरे नीले आसमां के <br /> डूबते हुए किसी छोर पर <br /> कहीं कोई एक आँख है ... और ...<br /> उसी आँख की दाहिनी कोर से<br /> चतुर्भुज हो बैठी धरा पर <br /> टपकती है न ... स्मृति ...<br /> टप ... टप ... टप ...</span></span></span><br />
<br />
<br />
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show"><span style="font-size: large;">~~~हेमा~~~ </span></span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-3786514753026278382014-01-24T19:24:00.002+05:302014-01-24T19:29:58.639+05:30पूरी बातों में रखे हुए अधूरेपन ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span style="font-size: large;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent">................................................<br /> ..............................................<br /> कि सोलह कलाओं के चौसठ खानों में <br /> किन पाठों का पुनर्पाठ करते है सोलह श्रृंगारों में सज्जित <br /> सोलह संस्कारों में बिंधे <br /> सोलह आने सच के ढाई कदम ...<br /> कि अँधियारे पाख और उजियारे पाख की <br /> चौरस जबान की नोक पर रखे <br /> आठ वर्गों के गुणनफल के दोहरेपन की उपज पर काबिज <br /> सोलह मंत्रकों में हो सकती है <br /> किसी सत्ता के कथा-पायों को थामे बैठी <br /> बत्तीस पुतलियाँ .....................<br /> <br /> ... कि पूरी बातों में रखे हुए ढाई क़दमों में होते है कुछ अधूरेपन ...</span></span></span></h5>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-79945620527188949232014-01-19T21:31:00.000+05:302014-01-19T21:32:40.562+05:30क्योंकि कहा जाना एक जरूरी पहल है ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span style="font-size: large;">माना कि बरसना-गरजना और <br /> हमारी पीठ पर तड़ा-तड़ टूट कर<br /> बरस जाना ...तुम्हारा स्वभाव ठहरा ...फिर भी ...<br /> मेरी ही जड़ों पर पडी है जो <br /> मेरी ही ...<br /> चिंदी-चिंदी हुई <br /> पीले फूलों की पीली पाँखुरियाँ ...</span><span class="text_exposed_show"><span style="font-size: large;"><br /> कि तुम्हारे प्रति है उनके मन में बेतरह क्रोध <br /> अजन्मी रह गई छीमियों के लिए ...<br /> तीन दिनों की <br /> बारिश,आँधी-पानी और पाले के बाद निकली धूप से <br /> झुकी हुई टेढ़ी कमर और <br /> बेहद भारी, भीगी पलकों वाली <br /> पलाई हुई, ठिठुरी सरसों ने <br /> दबी जबान से ही सही </span><br /> <span style="font-size: large;">पर कहा ...<br /> कि मेरे पीले मन में आ बैठी है <br /> दुःख,उदासी और घोर निराशा ...</span></span></span><br />
<br />
<br />
<br />
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show"><span style="font-size: large;">~~~हेमा~~~</span> </span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-43640197170547498012014-01-14T20:33:00.001+05:302014-01-14T20:37:03.529+05:30आसमां पर पीठ टिकाए एक जिद ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}" style="font-size: large;"><span class="userContent">................................<br /> .........................................<br /> <br /> कहो और कहते रहो कि<br /> प्रेम का रँग नीला है<br /> कि आसमान है उसका वितान ...<br /> तुम चाहो तो जिदिया सकते हो ...<br /> जिदियाने पर हक है तुम्हारा ...<br /> <br /> पर जिदियाने से कुछ होता नहीं है <br /> जबकि तुमने सुन लिया था ...<br /> कि मैंने कहा था ना <br /> कि प्रेम का रँग हरा होता है ...<br /> <br /> आखिर इश्क के रँग के ताउम्र<br /> हरे रहने में कोई बुराई तो नहीं ... <br /> <br /> .....................................................................................<br /> .... रात गये ठहरी हुई एक जिद ...</span></span></h5>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span style="font-size: large;">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent"> </span></span></span></h5>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span style="font-size: large;">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent"> </span></span></span></h5>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}" style="font-size: large;"><span class="userContent">~~हेमा~~ </span></span></h5>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-11912627320050082712014-01-04T15:15:00.001+05:302014-01-04T15:26:17.407+05:30ओरछा के हरदौल ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राजाओं की हठधर्मिता एवं उनकी रानियों की विवशता की एक और कथा है जो पूरे बुदेलखंड में कही गाई और सुनी जाती है ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV0jamJOVUy8tv5TYC04OftR9HEhyphenhyphen5AIDPkIdgwS8eGPEHsuOVNFMEVhVJt1QHyjzL9YNcHfyQv4ZDwvjjz14C00OrsNOQzRfxK41lpigQFyWDnESzVslkNrrVXs2zwrslXSH_zdadC8C-/s1600/1456970_690582477671850_1081132568_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV0jamJOVUy8tv5TYC04OftR9HEhyphenhyphen5AIDPkIdgwS8eGPEHsuOVNFMEVhVJt1QHyjzL9YNcHfyQv4ZDwvjjz14C00OrsNOQzRfxK41lpigQFyWDnESzVslkNrrVXs2zwrslXSH_zdadC8C-/s320/1456970_690582477671850_1081132568_n.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
यह कहानी बीर सिंह जू देव के पुत्र लाला हरदौल की कहानी है ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ओरछा नरेश राजा जुझार सिंह के भाई लाला हरदौल और उनकी राजमहिषी चम्पावती की ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
दीवान हरदौल / लाला हरदौल ओरछा नरेश के छोटे भाई थे ... और अपने बड़े भाई के परम भक्त ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
बुंदेलों के साम्राज्य एवं ओरछा नरेश की विशिष्ट सुरक्षा के दृष्टिकोण से दीवान हरदौल ने ओरछा की राज सेना के अतिरिक्त अपनी एक अलग युद्ध वाहिनी तैयार की थी और उसके माध्यम से कई युद्ध लादे भी थे और जीते थे ... राजा जुझार सिंह एवं लाला हरदौल के मध्य अटूट विश्वास एवं अगाध प्रेम निर्मल बेतवा की तरह प्रवाहित था ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राजमहिषी चम्पावती ,लाला हरदौल को पुत्रवत स्नेह करती थी ... लाला हरदौल उनकी आँखों के तारे थे ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
और लाला हरदौल अपनी भाभी माँ के चरणों में प्रण-प्राण से न्यौछावर थे ... </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उस समय दिल्ली मुगलों की सत्ता का केंद्र थी और ओरछा , दीवान हरदौल एवं उनकी असीम शौर्य धारिणी युद्ध वाहिनी को अपने लिए खतरा जानते और मानते हुए उन पर मुग़ल सम्राट की निगाहें टेढ़ी थी ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कहते है एक षड्यंत्र के अधीन राजा जुझार सिंह को मुगलिया सल्तनत ने दिल्ली आमंत्रित किया और उनकी राज महिषी एवं लाला हरदौल के संबधो के कलुष का विष उन्हें और उनके कानों को पिलाया गया ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
लाला हरदौल की ओरछा की एवं अपने परम प्रिय बड़े भाई ओरछा नरेश जुझार सिंह की अतिरिक्त चिन्तना में निर्मित की गई युद्ध वाहिनी ही उनके और उनके भाई के प्रेम के नाश का आधार बनी ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
मुगलिया सल्तनत ओरछा नरेश को यह विश्वास दिलाने में सफल हुई कि उनकी राजमहिषी चम्पावती एवं ओरछा की सत्ता के लोभ में ही लाला हरदौल ने यह महात्वाकांक्षी युद्धवाहिनी तैयार की है ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ओरछा लौटते ही ओरछा नरेश ने राजमहिषी को बुला भेजा और पत्नीधर्म एवं चरित्र निष्ठा की प्रतिष्ठा के नाम पर उन्हें परीक्षित करने हेतु अपना घृणित प्रस्ताव उनके समक्ष रख दिया ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कि यदि तुम मुझे प्रेम करती हो और अपने पत्नीधर्म में सत्यनिष्ठ हो तो तुम्हे हरदौल को अपने हाथों से विष दे कर उनकी ह्त्या करनी होगी ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राजमहिषी के तमाम विरोध एवं याचनाएं पतिधर्म एवं राजाज्ञा के समक्ष निष्फल सिद्ध हुई ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कहते है लाला हरदौल को रानी चम्पावती के हाथों की बनी उनके लाड़ से पगी खीर बेहद प्रिय थी ... राजमहिषी ने खीर में विष मिला कर उसका पात्र लाला हरदौल को अपने हाथो से दे दिया ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कहते है कि इस षड्यंत्र और खीर में विष होने की सूचना लाला हरदौल को उनके गुप्तचरों ने पहले से ही दे दी थी ...</div>
<div style="text-align: justify;">
परन्तु उन्होंने अपने भाई अथवा रानी चम्पावती से प्रश्न तो दूर एक शब्द या एक दृष्टि भी न उठाई ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
और अपनी माँ समान राजमहिषी की अग्निपरीक्षा को प्रज्ज्वलित करने हेतु उन्होंने बिना किसी प्रश्न के ,अपने संबंधों की धवलता को स्थापित करने हेतु विष मिली पूरी खीर खा ली ... </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कहते है राजा जुझार सिंह ने अपने द्वारा संपन्न इस हत्या का सम्पूर्ण दृश्य अपनी आँखों से देखा ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
सम्पूर्ण विष भरी खीर खा लेने और उसके असर से तड़पते और मरते अपने प्राण प्रिय भाई को देखने के पश्चात </div>
<div style="text-align: justify;">
ही उन्हें अपनी राजमहिषी के चरित्रवान एवं संबंधनिष्ठ होने पर यकीन आया ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यह एक ही प्रसंग में दो विपरीत ध्रुवों पर प्रतिष्ठित दो तरह के राजपुरुषों की कथा है ... संबंधों एवं चरित्रनिष्ठा के नाम पर अपनी राजसत्ता के अधीन एक स्त्री को विवश कर जान लेने वाले हत्यारे राजपुरुष की और एक स्त्री के सम्मान एवं चरित्रप्रतिष्ठा पर अपने प्राण देने वाले राज पुरुष की ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
दोनों ही समर्थ और सत्तावान है ... पर एक सत्ताओं के उपभोग एवं दुरुपयोग का एवं दूसरा सत्ता एवं सामर्थ्य के उपयोग के फर्क का साक्षी है ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कहते है लाला हरदौल अपनी बहन से बेहद स्नेह रखते थे सो वह उनके विवाह में अपनी मृत्योपरांत सशरीर उपस्थित थे तबसे बुंदेलखंड के प्रत्येक विवाह में हरदौल को भात भेजने/देने की परम्परा है ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
हरदौल के भात के गीत समस्त बुंदेलखंड में गाये जाते है ... सिर्फ ओरछा ही नही वरन अन्य जगहों पर भी लाला हरदौल की चौकियां है ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
मुझे नहीं पता रानी चम्पावती ने इस घटना के बाद अपना बाकी का जीवन अपने पुत्रवत देवर की हत्या करने के अपराधबोध एवं मानसिक संत्रास के साथ कैसे जिया होगा ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
या अपने परम स्नेह के पात्र लाला हरदौल की हत्या करवाने वाले ओरछा नरेश, अपने स्वामी एवं पति के साथ </div>
<div style="text-align: justify;">
अपने संबंधों का निर्वहन कैसे किया होगा ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
मुद्दा ए विमर्श :- युग कोई भी रहा हो राजा कोई भी चरित्र के नाम पर स्त्रियों को प्रश्नांकित करना और उन्हें</div>
<div style="text-align: justify;">
विवश करना सत्ता चरित्र रहा है ... स्त्री का चरित्र ... स्त्री का चरित्र ... स्त्री का चरित्र ... आजीवन उसका पीछा</div>
<div style="text-align: justify;">
करता है ... </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-2195132610704871962013-12-30T19:50:00.000+05:302013-12-30T21:35:37.787+05:30झड़ते हुए पत्तों के बीच में ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
किसी पनवाड़ी को देखा है कभी कोल्ड ड्रिंक बोले तो ठंडा की बरफ भरी वाली टीना की पेटिया का ढक्कन उठा कर 'ठन्डे' की बोतल निकालते और थम्स अप के अँगूठे की अदा में बाएँ हाथ में ठंडा की बोतलिया को थोडा तिरछा कर ऊपर उठाते-थामते और काने से बंधे ओपनर उर्फ़ खुलैया दद्दा से टाक से उसका ढक्कन खोलते ...<br />
<br />
देखा है न ... ऐसे ही ... बिलकुल ऐसे ही ... कोक स्टूडियो 'हुस्ना' पर क्लिक का 'टाक'होते ही खुलता है ...पियूष मिश्रा का 'हुस्ना' ... एक मगन गीत की मग्नता के ढेरो-ढेर युग्म खुलते है ... खुलते है ... और खुलते ही जाते है ... अलहदा सी बैठकी में घुले हुए पियूष ... माइक के पास ... बेहद पास ...रेशम गली के दूजे कूचे के चौथे मकान में गुम हुई सी बंद आँखों के साथ ... वो दोनों हाथ की अनबजी चुटकियों का गूँजता नैरन्तर्य ... शब्दों और अपनी धुन के साथ अपनी दृश्यता में बकमाल बजता है ...<br />
<br />
गिटार पर बजती सिर्फ उँगलियाँ ...<br />
<br />
धुंधले चेहरों के साथ विविध वाद्यों पर उँगलियों की गतियाँ ... और वो पहुँचे ... और हुस्ना की तान ... जहाँ ... यहाँ ... वहाँ ...<br />
<br />
वो होठों से घुली-मिली बाँसुरी और उसकी पीछे छूटे वक़्त में अपने कसक भरे पाँव धरती तान ... वो लयमयता ...<br />
सब मगन है ... डूबे है ...<br />
<br />
कोरस उठाते अनाम चेहरे ... अपनी-अपनी जगहों पर टिके सगरे के सगरे मगन है ...<br />
<br />
खुद डूबे है और आपके , आपको भी डुबा डालते है ...<br />
<br />
<br />
सुना जाना चाहिए ... सुनने भर के लिए नहीं ... देखा जाना चाहिए ... देखे जाने भर के लिए नहीं ...<br />
शब्दों की ... आवाज़ों की ... वाद्यों की ... वाद्यकों की ... उँगलियों की ... बिना उग्रता की गतियों की बला की गतिमान ध्वन्यता के लिए ... बिना हुस्ना की मौजूदगी चित्रित किए , हुस्न की इतनी सजीव एवं मारक दृश्यता लाने के लिए ...<br />
<br />
यकीन मानिए बिना किसी स्त्री-पुरुष की देह के नृत्य किये हुए एक गीत का पूरा का पूरा नृत्यमय होना ... हर शब्द में ... हर धुन में ... सब बजते है ... अपने अन्दर उतर कर ... और आप एक प्रवाह में उतर कर 'उडी-उडी' की ऐश्वर्या की मानिंद एक लहर हो जाना चाहेंगे , नृत्य की एक उमड़ आई लहर में बिना किसी बंदिश के गतिमान ...<br />
<br />
ओ हुस्ना मेरी SSS ... कभी की गुज़री दिवाली के बुझे दिये जल उठते है ... सच ...<br />
<br />
हज़ार-हज़ार बिजलियाँ गिरती है बुझे हुए पलों की चमक की ...<br />
<br />
बंसरी की धुन और उस पर मौजूद वाद्यक का सूफियाना मिज़ाज़ में उठना, गिरना ,बहना और थमना ...<br />
<br />
कितने-कितने कलेवर बदल-बदल कर मेरे अन्दर अपनी गत्यात्मकता की मिठास घोल देता है ... ऐसे जैसे कोई नाविक भरी दुपहरी भरी नदिया में भी अपने सधे हाथों से नाव पार उतार देता है ... <br />
<br />
पल-पल को गिनते ... पल-पल को चुनते ... हज़ारों लाखों दिलों में वलवले उठाते इन मासूम सवालों के जवाब मैं कहाँ से लाऊं ... कोई ला पाया है अब तक ... जो मुझे मिल जायेंगे ... बैठी हूँ यूँ ही झड़ते हुए पत्तों के नीचे ... यादों के गुम कबूतर अपने पंख फड़फड़ा रहे है ... यहाँ ... वहाँ ... उत्सवों के धुएँ गूँज उठते है ...<br />
<br />
इन कसकती बरबादियों के बीच ...<br />
<br />
आसमां एक ...जमीं एक ... उस पर रखे सूरज और चंदा एक ... हवा एक ... पर मुल्क दो ...<br />
कल्पना की रेखाओं में ... मजहब की लकीरों में ... तलवारों की धारों पर ... इंसानों की लाशों पर ... <br />
हिन्दुस्तान ... पाकिस्तान ...<br />
<br />
दो उठे हुए झण्डों में लिखी तकदीरों में कितनी बातें मिट गई ... मर गई ...<br />
<br />
चौदह अगस्त ... पंद्रह अगस्त के बीच कितने कोरस खो गए ...<br />
<br />
कितनी आँखें जो उन गलियों में उस रोज मुंदी तो कहीं और खुल जाने पर भी वक़्त के उस लम्हे ... उस गली में अटकी ही रह गई ...<br />
<br />
आख़िरी बीट पर मैं रुकती हूँ पल भर के लिए बंद की हुई आँखे खोलती हूँ और पूछती हूँ खुद से कि ... और तुम सोचती हो कि तुमने बहुत कुछ देखा है ...<br />
<br />
कोक स्टूडियो वाले जानते है कि ... आँख, उँगलियाँ और आवाज़ें एक साथ मिल कर सिर्फ गाते ही नहीं नाचते और नचाते भी है ... अपनी डूब में पूरा का पूरा डुबाते भी है ... मैं सुनती और देखती हूँ कि गीत नाच रहे है ... मुझे अपनी डूब में डुबा रहे है ....<br />
<br />
<a href="http://www.youtube.com/watch?v=4zTFzMPWGLs">http://www.youtube.com/watch?v=4zTFzMPWGLs</a><br />
<br />
<br /></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-68815001277893614142013-12-30T17:45:00.000+05:302014-01-24T19:13:04.343+05:30कच्ची-पक्की बातें ...१.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<span style="font-size: large;">..............................</span><br />
<span style="font-size: large;">..............................</span><br />
<span style="font-size: large;">..............................</span><br />
<span style="font-size: large;">कि क्यों पीछे छूटे हुए</span><br />
<span style="font-size: large;">उस कमरे में ही</span><br />
<span style="font-size: large;">खो गए है</span><br />
<span style="font-size: large;">हर करवट पर</span><br />
<span style="font-size: large;">उसके घूमते हुए मौसम के</span><br />
<span style="font-size: large;">अनुकूल रखे हुए तुम्हारे हाथ ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">हर बार उसी कमरे की कसी हुई</span><br />
<span style="font-size: large;">नियति में मिलना ...</span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसे और इस तरह मिलना</span><br />
<span style="font-size: large;">कि खिली हुई धूप सा खिलना ...</span><br />
<span style="font-size: large;">बादलों की ओट में वहीं से</span><br />
<span style="font-size: large;">किसी और छोर के लिए</span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसे और इतना बिछड़ना ... </span><br />
<span style="font-size: large;">कि मिलना हो जाए </span><br />
<span style="font-size: large;">स्मृति की डिबिया के ऊपर बैठी एक छोटी बुंदकी भर ...</span><br />
<span style="font-size: large;">और बिछड़ना</span><br />
<span style="font-size: large;">जीवन के आसमान पर तना घना चौमास ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">कि क्यों ... आखिर क्यों ...</span><br />
<span style="font-size: large;">कुछ कमरों के ललाट पर मिलने से कहीं अधिक</span><br />
<span style="font-size: large;">विरह के मौसम लिखे होते है ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">~~~हेमा~~~</span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-18210582925847824882013-11-27T18:25:00.001+05:302014-01-24T19:14:38.021+05:30ध्वनि ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">१.</span><br />
<span style="font-size: large;">चुप की जमीन पर रहने वाले ही</span><br />
<span style="font-size: large;">चुप्पियों का पता देते है ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">२.</span><br />
<span style="font-size: large;">चुप्पी ध्वनि की निद्रा है ...</span><br />
<span style="font-size: large;">मौन स्वर का जागरण ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">३.</span><br />
<span style="font-size: large;">और जागरण से पूर्व ...</span><br />
<span style="font-size: large;">उन्ही चुप्पियों की हथेलियों में</span><br />
<span style="font-size: large;">कुछ स्वप्न भी तो रहते ही है ...</span><br />
<span style="font-size: large;">हाँ ... वही तो है</span><br />
<span style="font-size: large;">जो जागरण का स्वर बुनते है ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">४.</span><br />
<span style="font-size: large;">देखो यह कितनी अच्छी सी बात है, कि</span><br />
<span style="font-size: large;">ध्वनियों की निद्रा के घर में ही सही, पर</span><br />
<span style="font-size: large;">स्वप्नों का हँसना -</span><br />
<span style="font-size: large;">उनके मरने से कहीं ज्यादा</span><br />
<span style="font-size: large;">आसान हुआ बैठा है ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">~~हेमा~~</span><br />
<br /></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-60345728667898419722013-11-16T14:34:00.001+05:302014-01-24T19:18:25.989+05:30अनु-संधान ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">झक्की होना </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">अपनी मौलिकता का </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">अनुसंधान है ...</span><br />
<span style="font-size: small;"><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande',tahoma,verdana,arial,sans-serif; line-height: 15.4545px;" /></span>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">उस पिछड़े और </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">लहूलुहान स्वरुप का </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">जो हमारे </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">आईने बनने के </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">पहले का </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">नींव का पत्थर था ...</span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">...................................</span><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: small; line-height: 15.4545px;">~~~हेमा~~~ </span><br />
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-53879817551870663842013-11-15T18:23:00.000+05:302014-04-22T18:58:10.664+05:30कछुए की पीठ का रेखागणित ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
"हम सब मशीन है तुम भी मैं भी ..."<br />
......................................................<br />
..................................................<br />
.........................................<br />
<br />
और मशीनों का क्या होता है ...<br />
शून्य ...<br />
शून्य / शून्य = शून्य परिणति ...<br />
कुछ भी नहीं ...<br />
हाँ कुछ भी नहीं ...<br />
कभी भी नही ...<br />
कहीं भी नहीं ...<br />
<br />
कि क्यों सारे दिनों की शुरुआत सर्द और मशीनी है ...<br />
कि क्यों इनमें नहीं है पीले फूलों पर पड़ती हुई पीली धूप ...<br />
<br />
कि क्यों इनमें नहीं है आँच अपर चढ़े चाय के पानी में<br />
मनचीती आकृतियाँ उकेरती अधघुली वो भूरी रंगत ...<br />
<br />
कि क्यों है यह एक ऐसा मौसम जिसके तीसों दिनों के अम्बर पर लिखा हुआ है उसके ना होने वक्तव्य ...<br />
<br />
कि क्यों ऐसे 'ना-अम्बर' की सुबह की खामोश ठहरी हुई<br />
धुँध को छू कर खिड़की से<br />
तिरछी रेखाओं में फिसल कर<br />
कमरे में उतारते हुए<br />
किन्ही मुलाकातों के नीचे<br />
डूबे पड़े क्षण ,<br />
अपनी डुबक के बुलबुलों में से<br />
सर उठा कर बस एक साँस भरने भर में ही<br />
कैसे तो कह ही डालते है ...<br />
साथ और संगतियों का<br />
मरे पड़े होना ...<br />
<br />
कि क्यों कछुए की पीठ पर जनम से चिपकी उसकी पृथ्वी से जड़ होते है<br />
अक्सर ही हमसे चिपके हुए संबंधों के विरसे ... <br />
<br />
कि चुके हुए<br />
मुर्दा संबंधों का<br />
और-और जिन्दा होते जाना , हमारी पहचान में जुड़ते जाना ,<br />
उनको ही हर पल ढोते हुए चलते चले जाना ...<br />
जीवन के नरक होने की निर्मिति के सिवाय कुछ भी नहीं है ...<br />
<br />
कि नरक भी एक अहसास है ... अहसास भी निर्मिति है ... ???<br />
<br />
अक्सर ही जीवन कछुए की पीठ का रेखा गणित है ...<br />
<br />
<br />
~~~हेमा~~<br />
<br />
<br /></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-16820244832954900802013-10-28T18:54:00.001+05:302013-11-16T16:30:19.766+05:30 ... अपने स्वप्नों की मजदूर हूँ ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">जब भी</span><br />
<span style="font-size: large;">तुम जाते हो</span><br />
<span style="font-size: large;">जाने क्यों</span><br />
<span style="font-size: large;">अपने पीछे के</span><br />
<span style="font-size: large;">सारे दरवाजे बंद कर जाते हो </span><br />
<span style="font-size: large;">उन पर सात समंदरों के</span><br />
<span style="font-size: large;">बेनाम-बेबूझ</span><br />
<span style="font-size: large;">सात ताले जड़ जाते हो ...</span><br />
<span style="font-size: large;">और अपनी मायावी जेब के</span><br />
<span style="font-size: large;">पाताल लोक के</span><br />
<span style="font-size: large;">किसी कोने में कहीं</span><br />
<span style="font-size: large;">डाल लेते हो</span><br />
<span style="font-size: large;">सात तालों की एक</span><br />
<span style="font-size: large;">भूली हुई सिम-सिम</span><br />
<span style="font-size: large;">तुम्हारी भूली हुई दुनियाँ में</span><br />
<span style="font-size: large;">तुम्हारे पीछे</span><br />
<span style="font-size: large;">मैं स्वयं को</span><br />
<span style="font-size: large;">उठाती हूँ रखती हूँ</span><br />
<span style="font-size: large;">झिर्रियों से घुस आई </span><br />
<span style="font-size: large;">खुद पर जम कर बैठी धूल</span><br />
<span style="font-size: large;">झाड़ती हूँ पोंछती हूँ</span><br />
<span style="font-size: large;">रोशनदानों की बंद मुट्ठियों</span><br />
<span style="font-size: large;">से रिसती धूप से</span><br />
<span style="font-size: large;">खुद को </span><br />
<span style="font-size: large;">माँजती हूँ चमकाती हूँ</span><br />
<span style="font-size: large;">अकेलेपन की</span><br />
<span style="font-size: large;">एकत्रित भीड़ को धकियाते हुए</span><br />
<span style="font-size: large;">अपने अंतहीन सपनों में</span><br />
<span style="font-size: large;">फावड़े में</span><br />
<span style="font-size: large;">तब्दील हुए हाथों से </span><br />
<span style="font-size: large;">खोदती हूँ</span><br />
<span style="font-size: large;">मुक्ति की एक अनंत सुरंग ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">~~~हेमा~~~</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">(समकालीन सरोकार सितम्बर-अक्टूबर २०१३ अंक में प्रकाशित )</span><br />
<br /></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-82232303788450974962013-10-26T12:08:00.004+05:302013-10-26T12:13:54.412+05:30दाँव ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="post-header" style="color: #88aaa9; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 1em;">
<div class="post-header-line-1">
</div>
</div>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-2597618586793924327" itemprop="description articleBody" style="font-size: 14px; position: relative; width: 518px;">
<div dir="ltr" style="background-color: #6e7f7f; color: #ddfffe; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; line-height: 20px;" trbidi="on">
भागती हुई<br />
रेलगाड़ी में<br />
निचली बर्थ के<br />
खोंचक लगे<br />
उस कोने में ,<br />
घुटनों में<br />
अपना बाँया कान और<br />
थोडा सा ही माथा दिए<br />
वह औरत<br />
अपनी दसों उँगलियों को ,<br />
हद से बाहर रगड़ी<br />
घिसी हुई<br />
सार्वजनिक खिड़कियों की<br />
काली पड़ गई<br />
सलाखों पर कसे हुए<br />
करती है प्रतीक्षा ...<br />
तेजी से गुजरने वाले<br />
पुलों के नीचे से<br />
बहती नदियों के<br />
अपनी आँखों में<br />
उतरने का ,और<br />
उन आँखों में<br />
उठती आवाज़ के<br />
अपने ही कानों में<br />
सुने जाने का ...<br />
बस ऐसे ही<br />
उसकी प्रतीक्षा<br />
सर उठाती है<br />
और खँखार कर फेंकती है<br />
खूब ही ऊँचा उछाल कर<br />
आवाज़ के दरवाजों पर चिपका<br />
तुम्हारा ही बैठाया<br />
एक खोटा काला सिक्का ,<br />
और जैसे ...<br />
खेल डालती है ...<br />
भरी सभा में ..<br />
अपनी मन्नतों का<br />
एक दाँव ...<br />
सिर्फ अपने लिए ...<br />
<br />
<br />
~~हेमा~~</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #ddfffe; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif;"><span style="line-height: 20px;">समकालीन सरोकार सितम्बर-अक्टूबर २०१३ अंक में प्रकाशित</span></span></div>
</div>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-58550523591235996272013-10-21T13:20:00.000+05:302013-10-26T12:14:28.003+05:30विश्वास के दसवें पर ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अपनी सत्ता के मद में चूर<br />
घर में रहती स्त्री<br />
जैसे नींद के किसी<br />
अलसाये बिस्तर से उठा कर<br />
एक दिन अचानक ही<br />
पहुँचा दी जाती है<br />
बड़े साहबों की<br />
बड़ी दुनियाँ के<br />
बड़े से दफ्तर में ...<br />
<br />
अनगढ़-अनपढ़<br />
पर व्यवस्थापन की<br />
तमाम भाषाओं के<br />
अभ्यस्त हाथ<br />
संभाल लेते है<br />
बड़े साहबों की<br />
बड़ी गृहस्थी की<br />
बड़ी झाड़-पोंछ<br />
बड़ी साज-संभाल<br />
कर्मचारियों की<br />
राजनीतिक-गैरराजनीतिक उठा-पटक<br />
व्यवसायिक संबंधों की देखभाल<br />
टूट-फूट, मरम्मत और नई आवक ...<br />
<br />
उड़ती हुई तितलियाँ<br />
और उनके पँख<br />
गिनता हुआ <br />
ठीक एक स्त्री की तरह <br />
एक चमकीला इतराता हुआ दिन ...<br />
अपनी पलक की झपक में<br />
कहीं से बीन कर, उठा लाया था प्रलय ...<br />
इतराते हुए दिन के<br />
इठलाते पल्लू के किसी छोर पर<br />
एक अलमारी का<br />
छिप कर बैठा हुआ<br />
चोर कोना,<br />
खोल देता है अपना मुँह<br />
और उलट देता है<br />
'कुछ मीठा हो जाए' की<br />
ढेरों बखटी चमकीली पन्नियाँ ,<br />
सूखे गुलाबों के कंकाल ,<br />
उड़ चुकी खुशबुओं की<br />
ढनकती शीशियाँ ,<br />
रुमाल की आठ परतों में<br />
ढँका-संभला<br />
एक अनजान स्पर्श ,<br />
ढाई आखरों से टंकित सन्देश ...<br />
<br />
काँपते हाथ और धुआंई आँखे<br />
दबा डालती है <br />
मुँह और स्वेद कणों में<br />
उतर आये कलेजे का गला ...<br />
<br />
अब तक जलसाघरों में ही बैठे रहे<br />
समय की दृष्टि में<br />
उभर आती है<br />
एक अंतहीन<br />
बेजवाब महाभियोगों के<br />
सवालिया सिलसिलों की<br />
खूब गड़ा कर<br />
उकेरी हुई लिखाई ...<br />
<br />
गठबंधन की राजनीति की<br />
सारी धुरियाँ पलट जाती है <br />
सत्ताएं त्रिशंकु हो जाती है ...<br />
<br />
जिंदगी के अंत:स्थल पर<br />
उभर आती है<br />
एक संसद और<br />
दोयम ईंट की नींव पर<br />
उधार के विश्वास का <br />
सूदखोर संविधान ...<br />
<br />
जिसके पटल पर<br />
विश्वास मत<br />
शरणार्थी हो कर<br />
किन्ही जर्जर सरायों में<br />
छिपा लेते है<br />
अपना घात लगाया हुआ मुँह ...<br />
<br />
आस्थाओं के बीज खो बैठते है<br />
अपनी सारी उर्वरता ,<br />
अंधे रास्तों पर<br />
सिर्फ चला जाता है ...<br />
प्रकाश स्तंभों से आते<br />
अनदेखे प्रकाश स्रोतों की<br />
आभासी बैसाखियाँ<br />
सूखी जमीन की<br />
साफ़ आँखों में<br />
अचानक बेवजह ही उग आये<br />
मोतियाबिंदों के सफ़ेद माड़े और धुंधलके<br />
कभी साफ़ नही कर पाती ...<br />
<br />
उतरी हुई रंगतों वाली<br />
सर घुटी मुस्कुराहटों की<br />
झुकी कमर , फिर कभी<br />
सीधी नही होती ...<br />
<br />
अब कुछ भी हो जाए<br />
या फिर कर लिया जाए<br />
ज़िन्दगी की पीठ पर<br />
औंधे मुँह गिर पड़ी<br />
आस्थाओं की देह पर गड़े<br />
विश्वासघाती बखटेपन के<br />
नुकीले पँजे<br />
फिर कभी भी नहीं हटते ...<br />
<br />
<br />
~~~हेमा~~~<br />
<br />
<br />
(समकालीन सरोकार सितंबर-अक्टूबर २०१३ में प्रकाशित )<br />
<br /></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-69380420848318935912013-09-13T16:29:00.000+05:302013-09-13T16:31:16.385+05:30खामखाँ के भाई लोग ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}" style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 18px;">डिस्क्लेमर :<br />(..... यह पोस्ट मेरे अकुंठित मित्रों के लिए कतई नहीं है उनसे अनुरोध है कि वह पूर्ववत अपनी लय और मौज में रमे चलते रहें और मस्त रहें ......)<br /><br />अरे यार यह भाई लोगों की समस्या (... ???????????? ...कुंठा ) क्या है ......<br /><br />अकाउंट मेरा ... दीवार मेरी ... अहवाल मेरे ... और तस्वीरें भी मेरी ...<br /><br />मैं रोज परिवर्तित करूँ ... ना करूँ ...<br /><br />अपनी लगाऊं ... खेत-खलिहान ,इंसान ,इल्ली-बिल्ली किसी की<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"> भी लगाऊं ...<br /><br />तुम्हे क्या जी ... तुम्हारा क्या जा रहा है ...<br /><br />"जी हमारी तस्वीरों पर तो कोई नहीं आता कोई कमेन्ट नहीं करता आपकी पर सब दौड़े चले आते है आप स्त्री हैं ना ..."<br /><br />तो यह हमारी समस्या है ... और नहीं है तो बना दो ...<br /><br />दिन भर दूसरों के लाइक्स और कमेंट्स की गिनती और महानतम तुलनात्मक अध्ययन कर-कर समय खोटा करने वाले और आए दिन इसी बाबत कुंठाओं से जलते स्टेटस डालने और संदेशिया बक्सों में वक़्त-बेवक्त टपकने उंगली उठाने वाले महानुभावों ...<br /><br />नहीं देखा जाता तो अमित्र करो ,ब्लॉक करो, दूर रहो और कट लो बहुत तेज़ी से ...<br /><br />यार तुम्हारा दिल जलता है ...तो पानी डालो उस पर दो चार बाल्टी भर कर ...<br /><br />और नहीं तो ख़ाक हो जाने दो ऐसे मुए जलकुकडे दिल को ... जिससे एक तस्वीर नहीं देखी जाती ...<br /><br />ना करो कमेन्ट ना करो लाइक ... चुपचाप निकल लो ना ज़ुकरबर्ग की पतली वाली गली से ...<br /><br />आखिर इन पर मधुमक्खियों की तरह टूट कर जमावड़ा लगाने वाले भाई लोग भी आप ही में से आ रहे है ना किसी दूसरी दुनियाँ के एलिएंस तो नहीं है ना ...<br /><br />नहीं भाई अपनी जलकुकड़ कुंठा उडेले बिना कैसे चले जायेंगे जी ...<br /><br />उगलना जरूरी है ना ...<br /><br />मेरी दीवार मेरी जगह है मेरा अपना कोना ...<br /><br />मेरी मर्जी ...<br /><br />मेरी दीवार और संदेशिया बक्सा आपकी उल्टियों के लिए कतई नहीं है ...<br /><br />जाइए दफा हो जाइए ...<br /><br />और अपने आँगन में जा कर अपनी कुत्सित मानसिकता के पेड़-पौधे लगाईए ... और उसके फल-फूल खाईए ... उसकी फसल काटिए और अपने विकारों के गोदाम खुद ही भरिये और खुद ही सिर्फ अपने लिए ही सहेजिये ...<br /><br />वाह जी ...अच्छी थोपी हुई वाहियात पुलिसिया श्रीमान खामखाँ वाली नैतिक जबरदस्ती है कि अपने विचार साझा करो दिन में कितने भी बार पर अपनी भौतिक उपस्थिति (दैहिक )जिसके अंतर्गत ही विचार भी उपज रहे है उसे ना साझा करो ... और अगर करते हो तो आपमें कुछ तो गड़बड़ है ... कुछ झोल-झाल लोचाइटिस आपमें घुसा कर थोप कर ही मानेंगे ...<br /><br />दिमाग का तो दही कर दिया है खामखाँ के भाई लोगों ने हाँ नहीं तो .... <i class="_4-k1 img sp_9lglf8 sx_007ddb" style="background-image: url(https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/yw/r/svhh826BLKd.png); background-position: 0px -1163px; background-repeat: no-repeat no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; vertical-align: -3px; width: 16px;"></i><br /><br />ससम्मान खुद विदा हो ले तो बेहतर ...<br /><br />नहीं तो ...</span></span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #37404e; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 18px;"><span class="userContentSecondary fcg" style="color: #89919c;"> — <span style="vertical-align: -2.9px;"><img alt="" class="_agk img" height="16" src="https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/y1/r/b39fgpId85q.png" style="border: 0px; margin-right: 3px; vertical-align: -2.9px;" width="16" /></span>feeling accomplished.</span></span></span></div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8051650689045514096.post-31385961291600492912013-08-26T16:16:00.000+05:302013-08-26T17:35:45.367+05:30वो फाँसे तो कभी निकाली ही नहीं गई ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h5 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<br /><div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_51335385cd23f4211447283">
<span style="font-size: large;">बचपन की माटी में संग-साथ इक्कड-दुक्कड़ खेलती ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">बेर का चूरन चाटती ... माँ की नजरों से छिप भरी दुपहरी टंकी के पानी में मेरी संगाती ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">गुड़िया-गुड्डा, नकली के ब्याह और घर-दुआर रचाती ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">दुपट्टे की साड़ी बाँध मेरी माँ सी हो जाती ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">खंडित हों गये व्रतों में तुलसी पत्ता खिला उन्हें अखंड कराती ...</span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;"><br /></span>
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;"> मेरी बेहद-बेहद अपनी ... जैसे मेरा मैं ही हो कर बीजित ...</span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;"><br />मेरी अनन्य सखी ... <br /><br /> </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;">उसके ब्याह और उसके बाद की व्यथा मेरे अंतर में <br /> उसकी घनी काली घुँघर वाली केशराशि की तरह अपना सर्पिल विस्तार बनाए बैठी ही रही है ...<br /><br /> </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;">अपना फन काढे जब-तब नश्तर चुभाती ... <br /><br /> </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;">सच्ची-मुच्ची के ब्याहों का झूठापन ...<br /><br /> </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;">उड़ते प्राणों का सजी-धजी गुड़िया ही हो जाना ...</span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;"><br />वो काली अँधेरी स्मृतियाँ ...<br /><br /> </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;">सब कुछ ठीक हो जाने और गृहस्थी सुचारू हो जाने से मर नही सकती ...</span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;"><br />वो फाँसे तो कभी निकाली ही नहीं गई ...</span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;"><br /></span>
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;"> उनके डेरे तो कभी उखाड़े ही नही गये ... <br /><br /> </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;">इस लिखत के शब्द तो बस उस पीड़ा की गुजरन की <br /><br /> </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="font-size: large;">उन अनंत आहों में से मात्र एक ही साँस भर है ....<br /> </span></div>
</h5>
</div>
हेमा दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/15580735111999597020noreply@blogger.com2