पोलिटिक्स सिर्फ इतनी है बॉस ...
कि चलना है तो हमारे जूते पहन कर चलो ...
हाथ उठाना है तो उसमें हमारे वाद का झंडा बुलंद करो ...
नहीं तो तुम्हे साँस लेने लिखने-बोलने,
दुनियाँ में होने का भी अधिकार नहीं है ...
तैयार रहिये ... हे बुद्धिहीनों ... वादहीनो ...
कभी भी खाए-चबाये या दबाये जाने के लिए ...
तुम्हारा तो कोई भविष्य ही नहीं है
... नामुराद 'पंथ' विहीनों ...
मैं देखती हूँ ... सुनती हूँ ... समझती हूँ ...
शब्दों ,पंक्तियों,ध्वनियों के मध्य गूँजते हुए ...
सिर्फ नफरत ...नफरत ...नफरत ...
सिर्फ अस्वीकार ... अस्वीकार ... अस्वीकार ...
सहअस्तित्वों का सर्वनाश ... :(((
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/