Friday, September 23, 2011

यही है प्रारंभ .....

यह आँखों के आगे
डाला है किसने
मुटठी में भरा
अपने अंतर का अँधेरा,
क्यों , कहते क्यों नहीं
कौन हो तुम ?
चाहते हो ,
मात्र चूमने के लिए
दिखते रहे मेरे ,
तुम्हारे स्पर्श से हीन ओंठ
और घुप्प अँधेरे में
उजाले को तरसती
हृदय में बुन डालूँ
तुम्हारी इच्छा के
जाल की जमीन का
बेसब्र आसरा
सुनो -
जाओ तुम
कहीं और
ले कर अपनी
यह अंध तलाश
मैं तुम्हारी अँधेरी राह
टटोल नहीं सकती
मात्र चूमे जाने
और बाहों में कसे जाने का अँधेरा
आँखों में
उजालो का घर रचे मैं
अस्वीकार करती हूँ
तुम्हारे स्वप्नों में भी
व्यक्ति नहीं
सखी नहीं
मात्र नारी देह समझा जाना
समझ लो -
यही है प्रारंभ
तुम्हारी चाहत
और मेरी चाहत के
टकराव बिंदु का !!



***हेमा***

Monday, September 12, 2011

तुमने कहा था ...

तुमने कहा था मुझे
पिछले बरस
एक रोज
कि अबकि बरस
जब मैं आऊंगा
तो बस फिर
तुम कह सकोगी
कि मैं ,
बस तुम्हारा ही हूं
तुम्हारे लिए ही
जीता और मरता हूँ
बस थोड़े से दिन काट लो
यह वक़्त यह पल
जरा गुजर जाने दो
तुम थोडा सा इंतजार कर लो
मैं तुम्हारा ही हूँ
दूर रहता हूँ तो क्या
काम में व्यस्त हूँ तो क्या
अभी अपनी ही धुन में हूँ तो क्या
इस बार
जब मैं आऊंगा
मौसम बन कर
सीधे
तुम्हारे दिल में उतर जाऊँगा
बिना बादलो के ही
बरस जाऊंगा
तुम्हारी मीठी नमी में
बस जाऊंगा
तुम्हारे वादों की हथेलियों में
मैं मुस्कुराई थी
और तुम्हारी आँखों में
अपने सारे सपने रख आई थी
सरसों की पीली धूप
तुम्हारे आँगन में खिला आई थी
सिर्फ तुम्हारे लिए
उस पिछले बरस पर
चढ गए
जाने और कितने
पिछले बरस
दूरियाँ समंदर हो गई
इंतजार भी गया गुजर
उड़ गया
आँखों से नमक
कोनों में सिमट गई
मुरझाई धूप
वादों की हथेलियों में
पड़ गई सलवटें
न वक्त रहा
न लम्हे
न तुम आए
न मौसम
सूखी नदिया
बिन बूंदों के तरसे
बिन बादल के
कौन यहाँ बरसे
तुम ने कहा था .........
तुम आओगे !!!
****हेमा****