Tuesday, December 20, 2011

अपने लिए ....

तुम्हारे घर की
तिमंजिली खिडकी से
कूदती है और रोज भाग जाती है
छिली कोहनियों और फूटे घुटनों वाली औरत
ढूंढती है नीम का पेड़
और झूलती है
जीवन-जौरिया पर
ऊँची पेंगो का झूला
नीले आसमान में उड़ते
आवारा बादलों को
मारती है एक करारी लात
गूंजती फिरती है
सूफियो के राग सी
तुम्हारी पंचायतो के ऊसरों पर
खेलती है छुपम-छुपाई
हाँफती है थकती है
किसी खेत की मेंड़ पर बैठ
गंदले पानी से धोती है
अपने सिर माथे रखी
लाल स्याही की तरमीमें
फिर बड़े जतन से
चुन-चुन कर निकालती है
कलेजे की कब्रगाह में गड़ी
छिनाल की फाँसे
सहिताती है
तुम्हारे अँधेरे सीले भंडारगृह से निकली
जर्दायी देह को दिखाती है धूप
साँसों की भिंची मुट्ठियों में
भरती है हवा के कुछ घूँट
मुँहजोर सख्तजान है
फिर-फिर लौटती है
तुम्हारे घर
कुटती है पिटती है
मुस्काती है
और बोती है तुम्हारे ही आँगन में
अपने लिए
मंगलसूत्र के काले दाने
लगाती है तुम्हारे ही द्वार पर
अपने लिए
अयपन और टिकुली के दिठौने .....






***हेमा ***

Saturday, December 3, 2011

.....मैं क्यों लिखती हूँ

सामान्य रोजमर्रा की जिंदगी जीते-जीते अचानक एक क्षण में कोई व्यक्ति ,कोई घटना ,
कोई शब्द ,कोई घुमाव आवेशित कर देता है । गढे हुए बासे चरित्रों से अलहदा एक व्यक्ति
के किरदार में डाल देता है ।यह किरदार कमर कसता है । तैयार हो जाता है । मैं रोज ही रसोई
करती हूँ ।
चूल्हे में लगाये तैयार चैलो में करना ही क्या होता है । ढिबरी से दो बूँद मिट्टीतेल की टपकन

माचिस की तिल्ली की रगड़-घिस्स बस । देखो फिर लपट और चिंगारियों की फ़ैल ।
मैं यह फ़ैल संभालती हूँ ।उठती लपक को धीमा तेज कर संभालती हूँ ।
चैलो से चटकते अंगारा हुए कोयलों की बाराखडी सुनती हूँ ।
धुआँते चैलो,पटैलों में अपनी सारी शक्ति का संकुचन कर फुँकनी से भरपूर फूंक मारती हूँ ।
उनके अंतिम छोर पर उठते कुलबुलाते पानी की पीली बुदबुदाहट सुनती हूँ ।
चटकते अंगारों को जंगहे चिमटे से खींच कर बाहर धर देती हूँ राख और कोयला अलग कर
देती हूँ । अंगारे चूल्हे की चौपाल पर पंचो की मानिंद लहकते है । पानी की छींटे अंगारों की

अराजक खौल ठंडा देती है।सबकी अपनी-अपनी नियति है ।
बर्तन को है आंच पर चढ़ना, जलना और मंजना । कोयले को है फिर जलना । अदहन को है

पकना और रोटीको सिंकना । राख के हिस्से घूरा । धुएँ के हिस्से आसमान की उठान ।
बटलोई के हिल्ले है तपना, मंजना, घिसना और फिर चढ़ना ।
अदहन को धुलना है । पकना है । पेट भरना है ।लिखना जैसे जीवन के भूखे पेट को खानाखिलाना है ।
जले बासन-जूठे बासन मांजती है राख । करखा और जूठन धोती है । बासनो का मुँह चमकाती
है।
चकमक,चमाचम । कविता राख की जाई चकमक है ।
घर में धुँआरा जरुरी होता है नहीं तो रसुइया धुँआ जाती है । धुँआ घर में भर जाए तो कुछ दिखता
नहीं सिवाय कसैलेपन के कोई स्वाद नहीं मिलता । धुँआरे मुक्ति है आसमान की ओर ।
पर धुँआरे की लंबी अँधेरी
सुरंग धुएँ की पीठ रगड़ डालती है । छिली पीठ पर कालिख मल देती है ।फिर कहती है उडो अब । दिखाओ दुनियां को मुँह । उजालो और आसमान की तलाश में धुँआ
तड़पता है । ऐंठता है । अंधी सुरंगों से सर मारता है ।गुलमे और गूमड़ लिए जब सुरंग के छोरसे निकलता है तो फिर नहीं रुकता ।बस उठता और उड़ता है ।खूब फैलता है । सबको दिखता है । बंद करो दरवाजे-खिड़कियाँ या फिर अपनी आँखें ही क्यों ना !
उसने तो घुस ही आना है । सड़ी व्यवस्थाओ को रुलाना है । उसका लक्ष्य बंद जगहों से उठ जाना
है ।उड़ना औरचुभना है ।लिखना धुँआ हैं मुक्ति है ।

मैं स्वयं से सवाल उठाती हूँ , क्यों, ऐसा क्यों है ?

मेरे अंदर घटितों का ग्रहण किस रूप में है , जो उन्हें ऐसे निरखता है परखता है ?
ऐसे अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होना क्या है ?
मैं क्या होना चाहती हूँ ?
मैं स्वयं को क्या मानती हूँ ?

मैं एक इकाई के रूप में स्वयं को व्यक्ति मानती हूँ । मैं व्यक्ति हूँ ।
तत्पश्चात यह व्यक्ति स्त्री है , बेटी है , बहन है , पत्नी है , माँ है , मित्र है , और भी बहुत कुछ है

जन्मना विशुद्ध रूप में मैं एक व्यक्ति हूँ । इस स्वरुप के चारों ओर कसी हुई सारी बुनावट

सामाजिक है । परिवेशिक है। गढ़ी हुई है । मेरे अंदर चीजों का ग्रहण व्यक्ति रूप में होता है ।वही निरखता
है परखता है घटितों को ।
मैं व्यक्ति होने की अदम्य इच्छा और उसके विरोधी सतत दबावों के जीवन में हूँ ।
व्यक्ति होना , अस्तित्वमय होना , मेरा निजत्व है । यह मेरे अपने होने का स्तर है ।
मैं इस स्तर से कमतर किसी भी चीज को अस्वीकार करती हूँ ।
किसी भी रूप में निजत्व की क़तर-ब्यौंत सुलगाती है । यह सुलगन असंतोष उपजाती है और
भूखा रखती है ।
लिखने का अर्थ मेरे लिए सवाल उठाना है और सवाल उत्तरयात्राओं के मार्ग खोजते है ।
व्यक्ति रूप में जीवन जीने की अदम्य इच्छा अपना मार्ग खोजती है ।
यह इच्छा स्वयं को लिखती है अनथक .....







***हेमा ***