Saturday, September 22, 2012

उम्मीद ... एक कमीज़ के बहाने से ...

सत्ता ,बाजार और पूँजी की
इस फर्राटा दौड़ में
जाने कितनी ही बार
उतरी और उतारी गयी
विरोध की , बेरोजगार
उतरे मुँह वाली
झक्क सफ़ेद कमीज़ें

और उन पर
टाँके गए
काले धागों से
दुःख और बेबसी के
मनमाने अँधे बटन ...

उघाड़े हुए सीनों और
बेची गई छातियों पर
उदारीकृत नीतियों के अधीन
मुक्त हाथों
छापे गये
निरीहताओं के खुले जख्म, और
उनमें भर दिये गए
जोड़-तोड़ और रियायतों की
मक्कार सियासत के,
बेपेंदे-निकम्मे घटक ...

फिर भी कहो तुम्हें कहना  ही होगा ...
कि जो ज़ख्म भरते नही
दिन और रात
गूँगे नासूरों की तरह
सिर्फ टीसते हुए भी ,
फटी बिवाइयों वाली
तपती हुई धरती के माथे पर
रख कर अपना हाथ
नाप ही लेते है
उसका अमियादी बुखार ...

और झोलाछाप तालिबानी सत्ताओं की
अवैध और शून्य
दिखावटी संरक्षण परेडों के नीचे भी
पनप ही जाती है ...

नयी क्रांतियों के अँगूठों की
चमकती स्याही की ज़बान ...


~~हेमा~

Wednesday, September 19, 2012

पाप


कुछ विलंबित ही सही परंतु मेरे आस-पास अपनी चौकस उपस्थिति के साथ मौजूद और अपना द्रोण ज्ञान बिन मांगे ही बाँटते कलजुगी नवगुरुओं की दिव्यदृष्टियों को साष्टांग प्रणाम के साथ समर्पित ...



उडती चिडिया पर
पत्थर मारना
निशाना साधना
पाप है ...

क्योंकि, उड़ना ...
उसकी साधना है
और ,
जमीन पर उतरना
दाना खोजना
उसका लक्ष्य है
क्षत-विक्षत होना
खंडित होना
जमीन पर गिर जाना
मृत्यु है
उसकी साधना की ...
लक्ष्य की ...

इसलिए बंद कर दो
उड़ानों के
लक्ष्य को बेधना
एकलव्य के
अँगूठे को
बार-बार माँगना
बस अब बहुत हुआ ...

अब आज और अभी
बंद कर दो ...

नृशंसताओं की
पूर्व आरक्षित
द्रोण परम्परा में
दायें हाथ के
प्रतिबद्ध ,
निर्दोष अँगूठों की
नींव भरना ... !!!

~हेमा~