Sunday, November 25, 2012

मुझे कहना है ...

मैंने छुटपन में पढ़ा था
और माना भी था कि ...

"भारत यानी इण्डिया एक कृषि प्रधान देश है ...
इसके निवासी
यहाँ की धरती मे
बोए गये बीजो से
उत्पन्न होने वाले
भांति-भाँति के स्वादों में
बहते और जीते है ..."

अब मैं जानती हूँ
और पहचानती हूँ कि ...

"भारत यानी इण्डिया एक भाव प्रधान देश है ...
यहाँ की सत्ताएँ
भाँति-भाँति की भावनाओं पर खेती करती है ...
और यह उमड़ता हुआ देश
भावनाओं की फसलों की लहरों में बहता है ...
कोई भी आता है या जाता है ...
मरता है जीता है ...
कहता  है सुनता है ...
जोड़ता है तोड़ता है ...
और यह उसकी लहरों में उठता और गिरता है ...
डूबता और तिरता है ...
जीता और मरता है ...
मारता और काटता है ...

सोता और रोता है ...
प्रलोभनों  के सर्कस में ,
भावनाओं की मौतों के कुँए से
खींचा हुआ पानी
हमारी अपनी ही माटी मे
हमारे ही सपनों की कब्रों पर
हमें एक गहरी नींद में खींचता है ...
और पलकों को जबरन मूंदता है ...

मुझे कहना है  ...
कि जागो ...

यह जागने का वक़्त है ...
एक बार फिर से
आज़ाद तरानों को गाने का वक़्त है ...
यह प्रभात फेरियों का वक़्त है ...



~~~हेमा~~~

Thursday, November 22, 2012

बिटिया का जाना ...

ड्राइंगरूम के सोफे के नीचे से झांकती 
एक चटक बैगनी स्लीपर 
फ्रिज के डोर मे ढनकती चौथाई बची स्प्राइट ...
मुड़ी-तुड़ी पन्नी से अपने दांत झलकाती अधखाई चाकलेट ...
जिस-तिस कोने से झांकती 
उसकी बनाई हुई सपनीली,
 पनीले रंगों वाली कचबतिया सी चित्र लेखाएँ ...
डिब्बे में बचा थोडा सा अनमना कोर्नफ्लेक्स ...
दूध वाले के नपने के नीचे
घटा हुआ दूध का अनुपात ...
सुबह से अनछुआ
अपने गैर कसे टेढ़े मुँहवाला जैम ...
लटके हुए फीके चेहरे वाला टोस्टर ...
फ्रीजर में खाली पड़ी आइस ट्रे ...
पीछे छूटी एक अदद स्कर्ट ...
एक बिना पेन का ढक्कन ...
सब के सब मिल कर
मेरी  उदासियों को बेतरह मुँह चिढ़ा रहे है ...
बहुत  कोशिशों के बाद भी रहती हूँ नाकाम ...
कोई भी चीज़ उसकी खिलखिलाहट की
अनुपस्थिति को भर नहीं पाती  है ...
सोनचिरैया फिर से उड़ गई है ना ...
बस ऐसे ही मेरी
सोनचिरैया आती है जाती है और
अपने दो-चार पँख छोड़ कर
फिर से उड़ जाती है ...


~~~हेमा~~~

Sunday, November 18, 2012

यूँ ही बस ऐसे ही ...२


समय की
किसी चोर तह में,
दबा कर रखा हुआ
कोई पुराना प्रेम
दबे पाँव
उतर आई
किसी शाम
ऐसे मिलता है
जैसे किसी
कविता की
किताब के
किसी ख़ास पन्ने पर
डाला हुआ
तीन कोनों का
एक छोटा सा
मोड़ - त्रिकोण ...

किसी भी दिशा में
अलट-पलट
हो जाने पर भी
समय की
जाने कितनी ही
सुरंगों से
गुजर जाने पर भी
बना रहता है
वैसा ही - त्रिभुजाकार
और अपने बिन्दुओं पर
उतना ही तीखा और
धारदार ... !!!

~~हेमा~~