Thursday, December 6, 2012

सिलसिला ...

मेरे भीतर
एक फरियादी सूरज
रोज एक
बहरे आसमान में चढ़ता है ,
गुहार  लगाता है ,
सर पीटता है और
बेआवाज दिशाओं के
गमछे से
अपने पसीने को पोंछता हुआ
मेरी विवशताओं के
पश्चिम में ढेर हो जाता है ...
क्या  करूँ ...
रोज का यही सिलसिला है ...


~~~हेमा~~~

Wednesday, December 5, 2012

गुजर गया एक और दिन ...

धृतराष्ट्र देश की
अंधी महाभारतों में
सारे 'भीष्मपुत्रों' की
गर्दनों को रेतता हुआ
देखो आज फिर
गुजर गया
एक और दिन
हाथ मलता हुआ ...

शब्द-अशब्द
स्वीकृति-अस्वीकृति
सहमति-असहमति
उपस्थिति-अनुपस्थिति
अमर्ष-विमर्श के
स्वांगों की रामनामी ओढ़े
शकुनि राजनीति की
त्यौरी चढ़ी बिसातों पर
झल्लाते पासों का
एक और दाँव
खेलता हुआ ...
गुजर गया
एक और दिन
हाथ मलता हुआ ...

पेट के बल
औंधे मुँह लोटती
खोखले बादलों की
सूखी वर्षाओं के
भविष्यफलों का
लग्न-पत्रा बांचता हुआ ...
गुजर गया
एक और दिन
हाथ मलता हुआ ...


~~~हेमा~~~