Saturday, May 18, 2013

मैं नारीवादी हूँ ...

क्या आप नारीवादी ( Feminist ) कहलाने से घबराते है ...
आपको लगता है कि आप एक घेरे में कैद कर दिये जायेंगे ...
आपको लगता है कि आपको अतिवादी ठहरा दिया जाएगा ...
आपको असहज, असामान्य और अराजक कह कर व्यतिक्रमित कर दिया जाएगा ...
आपको सम्पूर्ण पुरुष समाज के विरुद्ध खड़ा घोषित कर दिया जाएगा ...
आप स्वच्छंद और समाज को तोड़ एवं नष्ट-भ्रष्ट करने वाली स्त्री घोषित कर दी जाएँगी ...
आपके विरोधों एवं अवाज़ उठाने के सभी मुद्दों एवं आधारों को निजी एवं अपवाद स्वरूप कह कर खारिज़ कर दिया जाएगा ...
आपको स्त्री विमर्श में सम्मिलित नक्कारखाने में बजती एक और बेमायने तूती करार दिया जाएगा ...    

आपको एवं आपके लिखे हुए को अतिरंजना एवं उग्रता से संक्रमित कहा जाएगा ...                                 आपको एक समाज बाहर स्त्री के रूप में देखा और कनखियों से मुस्कुराया जाएगा ...

तो ...
इससे क्या ...
गर्व से कहिये कि ...
हाँ ... हम नारीवादी है ...
पलट कर पूछिए नारीवादी होने में क्या बुराई है ...
अपने स्वछंद स्त्री कहलाये जाने का शोक मत मनाइये ...
आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आप स्वच्छंद नहीं स्वतंत्र स्त्री की पक्षधर है ...

खुल कर और बुलंद आवाज में कहिये ...
स्त्री हूँ उसी दुनियाँ में डेरा है मेरा ...
निश्चित ही बातें वहीँ से उठेंगी और आयेंगी जहाँ जन्मभूमि है मेरी ...

आधी आबादी बाकी आधी आबादी को खलनायक सिद्ध करने को नहीं लिखती और कहती है ...
आधी आबादी लिखना और कहना चाहती है ... प्रतिरोध ...
प्रतिरोध किसका ... वर्चस्व का ...
किसके वर्चस्व का ... सत्ताओं के वर्चस्व का ...

प्रतिरोध ... दम घोंटती, सड़ांध मारती, बजबजाती परिस्थितियों को यूँ ही बनाए रखने की अंधी जिदों का ...
प्रतिरोध ... असहनीय यथास्थितियों के विरुद्ध जबरन चुप साधे रखने की घोट कर लहू में घोली गयी रीत-नीत का ...

लिखा जाता है प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए उन स्थितियों पर जिन्हें देखते हुए भी आँखे बंद रखी और रखवाई जाती है ...

गर्व से कहिये कि हम नारीवादी ( फेमिनिस्ट ) है ...



                                                                                                        -  Painting A self-portrait of Frida Kahlo

Sunday, May 12, 2013

तुम्हारा तो कोई भविष्य ही नहीं है ... :/





पोलिटिक्स सिर्फ इतनी है बॉस ...

कि चलना है तो हमारे जूते पहन कर चलो ...
 

हाथ उठाना है तो उसमें हमारे वाद का झंडा बुलंद करो ...

नहीं तो तुम्हे साँस लेने लिखने-बोलने, 

दुनियाँ में होने का भी अधिकार नहीं है ...
 

तैयार रहिये ... हे बुद्धिहीनों ... वादहीनो ...
 

कभी भी खाए-चबाये या दबाये जाने के लिए ... 

तुम्हारा तो कोई भविष्य ही नहीं है 

... नामुराद 'पंथ' विहीनों ...
 

मैं देखती हूँ ... सुनती हूँ ... समझती हूँ ...
 

शब्दों ,पंक्तियों,ध्वनियों के मध्य गूँजते हुए ...
 

सिर्फ नफरत ...नफरत ...नफरत ...
 

सिर्फ अस्वीकार ... अस्वीकार ... अस्वीकार ...
 

सहअस्तित्वों का सर्वनाश ... :(((

Saturday, May 11, 2013

'आईना' जो आम तो बिलकुल ही नहीं है ...

अभी तक तो हम यही जानते थे कि 'आईने' आत्म-दर्शन का माध्यम हुआ करते है ...

आज एक बहुत-बहुत बड़े आदमी के 'आईने' का प्रदर्शन देखा तो पता लगा कि तथाकथित बौद्धिकों के तो 'आईने' भी उनके बड़ेपन के घोर बौद्धिक घमण्ड का आत्म-प्रदर्शन हुआ करते है ...

भाई यह बड़े-बड़े लोग किस कदर अपनी अर्जित पूंजियों के प्रदर्शन को बौद्धिकता के छौंक के साथ प्रदर्शित करने के लिए तरसे-टपके जा रहे है ...

दरो-दीवार अब घर के होने के लिए नहीं है बल्कि यह दिखाने के लिए है कि हमारी तो दीवारे भी बुद्धिजीविता की साँसें भरती है ...देखिये किस-किस और कितने बड़े नामों की कलाकृतियों के ओढने-बिछौने से ढँकी-तुपी है ...

बकमाल मुफ्त की प्रदर्शनियाँ है भाई ... कोने-अतरों तक के वैभव प्रदर्शन के सोचे-समझे दर्शन के बौद्धिक प्रतिस्थापन की ...

फेसबुक पर अभी बौद्धिक पूंजीपतियों के शक्तिप्रदर्शन के दौर-ए-आँधियों का वक़्त है ...

बहुसंख्य किसी चमत्कृत मतिभ्रम के तहत जैसे इस नव-दर्शन की शक्ति पूजा में नत् है ...

आम-आदमी जरा हट के जरा बच कर चले लपेटे में आने पर सिर्फ और सिर्फ आप दोषी होंगे बौद्धिक पूंजीपति नहीं ...