Sunday, July 10, 2011

आँगन के पार


दिन भर के 
सन्नाटो से,
कमरे के ठन्डे
कोनो में पड़ी 
पीली, ऊबी हुई
लड़की ने 
खोल लिए
'आँगन के  पार द्वार'
चौखट का टेका लिए
देहरी पर  बैठी लड़की
तुमको पुकारती
परन्तु जीवन में 
तुम हो कहाँ
' अज्ञेय '
बस तुम्हारी तलाश
स्थिर आँखों से
आसमां के उस पार  !!



                        *** हेमा ***



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2 comments:

  1. अज्ञेय की स्‍मृति को समर्पित यह एक अच्‍छी कविता है। बधाई हेमा।

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  2. बस तुम्हारी तलाश
    स्थिर आँखों से...:)
    ye talash kab puri hogi...!!
    bahut pyari si rachna.....

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