Monday, September 12, 2011

तुमने कहा था ...

तुमने कहा था मुझे
पिछले बरस
एक रोज
कि अबकि बरस
जब मैं आऊंगा
तो बस फिर
तुम कह सकोगी
कि मैं ,
बस तुम्हारा ही हूं
तुम्हारे लिए ही
जीता और मरता हूँ
बस थोड़े से दिन काट लो
यह वक़्त यह पल
जरा गुजर जाने दो
तुम थोडा सा इंतजार कर लो
मैं तुम्हारा ही हूँ
दूर रहता हूँ तो क्या
काम में व्यस्त हूँ तो क्या
अभी अपनी ही धुन में हूँ तो क्या
इस बार
जब मैं आऊंगा
मौसम बन कर
सीधे
तुम्हारे दिल में उतर जाऊँगा
बिना बादलो के ही
बरस जाऊंगा
तुम्हारी मीठी नमी में
बस जाऊंगा
तुम्हारे वादों की हथेलियों में
मैं मुस्कुराई थी
और तुम्हारी आँखों में
अपने सारे सपने रख आई थी
सरसों की पीली धूप
तुम्हारे आँगन में खिला आई थी
सिर्फ तुम्हारे लिए
उस पिछले बरस पर
चढ गए
जाने और कितने
पिछले बरस
दूरियाँ समंदर हो गई
इंतजार भी गया गुजर
उड़ गया
आँखों से नमक
कोनों में सिमट गई
मुरझाई धूप
वादों की हथेलियों में
पड़ गई सलवटें
न वक्त रहा
न लम्हे
न तुम आए
न मौसम
सूखी नदिया
बिन बूंदों के तरसे
बिन बादल के
कौन यहाँ बरसे
तुम ने कहा था .........
तुम आओगे !!!
****हेमा****

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3 comments:

  1. बहुत खूब - वाह - अनूठे बिम्बों से सजी नायाब रचना

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  2. bahut achha likha aapne
    badhai
    ekdum dil senikli cheej
    bina lag lapet ke -bina bhashai chamatkar ke
    behad sadgi se sab kuchh kaha aapne

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  3. intezaaaar...mausam kee tarah rang badlta hai.. kabhi sard jaade kee thhithhuran jaisa to kabhi dhoop kee ushmaa jaise...

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