Wednesday, September 19, 2012

पाप


कुछ विलंबित ही सही परंतु मेरे आस-पास अपनी चौकस उपस्थिति के साथ मौजूद और अपना द्रोण ज्ञान बिन मांगे ही बाँटते कलजुगी नवगुरुओं की दिव्यदृष्टियों को साष्टांग प्रणाम के साथ समर्पित ...



उडती चिडिया पर
पत्थर मारना
निशाना साधना
पाप है ...

क्योंकि, उड़ना ...
उसकी साधना है
और ,
जमीन पर उतरना
दाना खोजना
उसका लक्ष्य है
क्षत-विक्षत होना
खंडित होना
जमीन पर गिर जाना
मृत्यु है
उसकी साधना की ...
लक्ष्य की ...

इसलिए बंद कर दो
उड़ानों के
लक्ष्य को बेधना
एकलव्य के
अँगूठे को
बार-बार माँगना
बस अब बहुत हुआ ...

अब आज और अभी
बंद कर दो ...

नृशंसताओं की
पूर्व आरक्षित
द्रोण परम्परा में
दायें हाथ के
प्रतिबद्ध ,
निर्दोष अँगूठों की
नींव भरना ... !!!

~हेमा~

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