डिस्क्लेमर :
(..... यह पोस्ट मेरे अकुंठित मित्रों के लिए कतई नहीं है उनसे अनुरोध है कि वह पूर्ववत अपनी लय और मौज में रमे चलते रहें और मस्त रहें ......)
अरे यार यह भाई लोगों की समस्या (... ???????????? ...कुंठा ) क्या है ......
अकाउंट मेरा ... दीवार मेरी ... अहवाल मेरे ... और तस्वीरें भी मेरी ...
मैं रोज परिवर्तित करूँ ... ना करूँ ...
अपनी लगाऊं ... खेत-खलिहान ,इंसान ,इल्ली-बिल्ली किसी की भी लगाऊं ...
तुम्हे क्या जी ... तुम्हारा क्या जा रहा है ...
"जी हमारी तस्वीरों पर तो कोई नहीं आता कोई कमेन्ट नहीं करता आपकी पर सब दौड़े चले आते है आप स्त्री हैं ना ..."
तो यह हमारी समस्या है ... और नहीं है तो बना दो ...
दिन भर दूसरों के लाइक्स और कमेंट्स की गिनती और महानतम तुलनात्मक अध्ययन कर-कर समय खोटा करने वाले और आए दिन इसी बाबत कुंठाओं से जलते स्टेटस डालने और संदेशिया बक्सों में वक़्त-बेवक्त टपकने उंगली उठाने वाले महानुभावों ...
नहीं देखा जाता तो अमित्र करो ,ब्लॉक करो, दूर रहो और कट लो बहुत तेज़ी से ...
यार तुम्हारा दिल जलता है ...तो पानी डालो उस पर दो चार बाल्टी भर कर ...
और नहीं तो ख़ाक हो जाने दो ऐसे मुए जलकुकडे दिल को ... जिससे एक तस्वीर नहीं देखी जाती ...
ना करो कमेन्ट ना करो लाइक ... चुपचाप निकल लो ना ज़ुकरबर्ग की पतली वाली गली से ...
आखिर इन पर मधुमक्खियों की तरह टूट कर जमावड़ा लगाने वाले भाई लोग भी आप ही में से आ रहे है ना किसी दूसरी दुनियाँ के एलिएंस तो नहीं है ना ...
नहीं भाई अपनी जलकुकड़ कुंठा उडेले बिना कैसे चले जायेंगे जी ...
उगलना जरूरी है ना ...
मेरी दीवार मेरी जगह है मेरा अपना कोना ...
मेरी मर्जी ...
मेरी दीवार और संदेशिया बक्सा आपकी उल्टियों के लिए कतई नहीं है ...
जाइए दफा हो जाइए ...
और अपने आँगन में जा कर अपनी कुत्सित मानसिकता के पेड़-पौधे लगाईए ... और उसके फल-फूल खाईए ... उसकी फसल काटिए और अपने विकारों के गोदाम खुद ही भरिये और खुद ही सिर्फ अपने लिए ही सहेजिये ...
वाह जी ...अच्छी थोपी हुई वाहियात पुलिसिया श्रीमान खामखाँ वाली नैतिक जबरदस्ती है कि अपने विचार साझा करो दिन में कितने भी बार पर अपनी भौतिक उपस्थिति (दैहिक )जिसके अंतर्गत ही विचार भी उपज रहे है उसे ना साझा करो ... और अगर करते हो तो आपमें कुछ तो गड़बड़ है ... कुछ झोल-झाल लोचाइटिस आपमें घुसा कर थोप कर ही मानेंगे ...
दिमाग का तो दही कर दिया है खामखाँ के भाई लोगों ने हाँ नहीं तो ....
ससम्मान खुद विदा हो ले तो बेहतर ...
नहीं तो ... —
feeling accomplished.
(..... यह पोस्ट मेरे अकुंठित मित्रों के लिए कतई नहीं है उनसे अनुरोध है कि वह पूर्ववत अपनी लय और मौज में रमे चलते रहें और मस्त रहें ......)
अरे यार यह भाई लोगों की समस्या (... ???????????? ...कुंठा ) क्या है ......
अकाउंट मेरा ... दीवार मेरी ... अहवाल मेरे ... और तस्वीरें भी मेरी ...
मैं रोज परिवर्तित करूँ ... ना करूँ ...
अपनी लगाऊं ... खेत-खलिहान ,इंसान ,इल्ली-बिल्ली किसी की भी लगाऊं ...
तुम्हे क्या जी ... तुम्हारा क्या जा रहा है ...
"जी हमारी तस्वीरों पर तो कोई नहीं आता कोई कमेन्ट नहीं करता आपकी पर सब दौड़े चले आते है आप स्त्री हैं ना ..."
तो यह हमारी समस्या है ... और नहीं है तो बना दो ...
दिन भर दूसरों के लाइक्स और कमेंट्स की गिनती और महानतम तुलनात्मक अध्ययन कर-कर समय खोटा करने वाले और आए दिन इसी बाबत कुंठाओं से जलते स्टेटस डालने और संदेशिया बक्सों में वक़्त-बेवक्त टपकने उंगली उठाने वाले महानुभावों ...
नहीं देखा जाता तो अमित्र करो ,ब्लॉक करो, दूर रहो और कट लो बहुत तेज़ी से ...
यार तुम्हारा दिल जलता है ...तो पानी डालो उस पर दो चार बाल्टी भर कर ...
और नहीं तो ख़ाक हो जाने दो ऐसे मुए जलकुकडे दिल को ... जिससे एक तस्वीर नहीं देखी जाती ...
ना करो कमेन्ट ना करो लाइक ... चुपचाप निकल लो ना ज़ुकरबर्ग की पतली वाली गली से ...
आखिर इन पर मधुमक्खियों की तरह टूट कर जमावड़ा लगाने वाले भाई लोग भी आप ही में से आ रहे है ना किसी दूसरी दुनियाँ के एलिएंस तो नहीं है ना ...
नहीं भाई अपनी जलकुकड़ कुंठा उडेले बिना कैसे चले जायेंगे जी ...
उगलना जरूरी है ना ...
मेरी दीवार मेरी जगह है मेरा अपना कोना ...
मेरी मर्जी ...
मेरी दीवार और संदेशिया बक्सा आपकी उल्टियों के लिए कतई नहीं है ...
जाइए दफा हो जाइए ...
और अपने आँगन में जा कर अपनी कुत्सित मानसिकता के पेड़-पौधे लगाईए ... और उसके फल-फूल खाईए ... उसकी फसल काटिए और अपने विकारों के गोदाम खुद ही भरिये और खुद ही सिर्फ अपने लिए ही सहेजिये ...
वाह जी ...अच्छी थोपी हुई वाहियात पुलिसिया श्रीमान खामखाँ वाली नैतिक जबरदस्ती है कि अपने विचार साझा करो दिन में कितने भी बार पर अपनी भौतिक उपस्थिति (दैहिक )जिसके अंतर्गत ही विचार भी उपज रहे है उसे ना साझा करो ... और अगर करते हो तो आपमें कुछ तो गड़बड़ है ... कुछ झोल-झाल लोचाइटिस आपमें घुसा कर थोप कर ही मानेंगे ...
दिमाग का तो दही कर दिया है खामखाँ के भाई लोगों ने हाँ नहीं तो ....
ससम्मान खुद विदा हो ले तो बेहतर ...
नहीं तो ... —
