चलने को
बना दी गई
गाढ़ी-पक्की
सीधी-सरल लकीरों की
पूर्व नियत फकीरी में
गाड़ा हुआ
खूँटा तुड़ा कर
छूट भागी स्त्रियाँ
हर ऐरे-गैरे की
ऊहा के
उत्खनन की
खटमिट्ठी झरबेरी हो जाती हैं ...
पूरी निष्ठा से
अपना फर्ज निभाते हुए
दौड़ पड़ते है
सारे खेतिहर ...
अपने-अपने
फरुआ,गैती,कुदाल,हल उठा कर
आखिर मेहनतकशी जो ठहरी ...
खूंदना-मूँदना है
उसका आगत-विगत
सोना-जागना, उठना-बैठना
साँस-उसाँस, उबासी
यार-दयार ... सब कुछ ...
और बीजना है
भूमिपतियों को
उस पर,
चटखारों की लिखावट का
अपना-अपना
दो कौड़ी का सिंदूर ...
चारों दिशाओं से उठती
असंख्य तर्जनियाँ
अपने काँधो पर पड़ा यज्ञोपवीत
अपने कानो मे
खोंस लेती है ...
लकीरों से हट कर
चलने वाली
स्त्रियों की
फ़िजा बनती है
बनाई जाती है
फ़िजाओं में घोली गई स्त्रियाँ,
स्त्रियाँ कहाँ रह जाती है ...
चौक पर रहने वाली
नगरवधुओं में
तब्दील कर दी जाती है ...
~हेमा~
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
Istriyo par likhi gayee kavita me naree chetna,adhikar, samajik sonch pr rachi gayee rachna bhav bodh kara rahi hai hema je bahut badhaye!!!: brijrsh
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ReplyDeleteमेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
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