मैंने सुना है
स्वर्ग होता है,
होता है
जीवन के बाद
मृत्यु के पार
होता है
और बहुत खूब होता है ...
वहाँ ‘सब कुछ’ होता है
वह सब कुछ
जो धरती का नरक भोगते
बसता है तुम्हारी कल्पनाओं में
जिसके सपने के पंखों पर
उड़-उड़ कर
रौरव नरकों के
जमीनी पल काटे जाते है ...
सुना है
वहाँ सर्व-इच्छा पूर्ति के
कल्पवृक्ष हुआ करते है
कामधेनु सरीखी
स्वादों की गाय होती है ...
समय के अणु जैसे थिर जाते हैं
नदी के तल पर टिक गई
किसी शिला की तरह
चिर युवा होते हो तुम ...
वहाँ बोटोक्स की सुइयाँ और
वियाग्रा की बूंदे नही मिलती
क्योंकि झुर्रियों और जरावस्था को
स्वर्ग का पता नहीं बताया गया है ...
वहाँ सोलह श्रृंगार रची
मेनका और रम्भा में बसी
सहस्त्रो, अक्षुण्ण यौवन वाली अप्सराएं हैं
सुर है सुरा है
नाद है गन्धर्व-नाद है
ऐश्वर्य है उत्सव है
उत्साह है अह्लाद है ...
राजपुरुषों से जीवन का
राजसिंहासनों पर बैठा
स्वर्ग में
सब सामान है ...
विस्मित हूँ मैं
मृत्यु के बाद भी
जीवन के पार भी
परलोक की रचना करने वाले
मक्कारों की व्यूह रचना पर ...
स्वर्ग में अप्सराएं बसती है
पर स्त्रियाँ नही मिलती ...
है किसी को पता ...
कि ‘उनके’ हिस्से का
वैभव, अह्लाद और स्वर्ग कहाँ है ...
क्यों नही है स्वर्ग में
अप्सराओं के पुरुषांतरण ...
कल्पनाओं में भी नहीं है ...
क्यों नहीं हैं
स्त्रियों के हिस्से के
आमोद की रचनाएं ...
सोचने पर
ढूँढें से भी मुझे
गले मिलने नहीं आते
उनके उत्सव ...
विस्मित हूँ और
क्रोधित भी
कि सृष्टि के
उत्सों की भाषा में
क्यों नहीं रचे गये
स्त्रियों के
निजी सुख ...
~हेमा~
'कथादेश' में जनवरी अंक २०१३ में प्रकाशित ...
स्वर्ग होता है,
होता है
जीवन के बाद
मृत्यु के पार
होता है
और बहुत खूब होता है ...
वहाँ ‘सब कुछ’ होता है
वह सब कुछ
जो धरती का नरक भोगते
बसता है तुम्हारी कल्पनाओं में
जिसके सपने के पंखों पर
उड़-उड़ कर
रौरव नरकों के
जमीनी पल काटे जाते है ...
सुना है
वहाँ सर्व-इच्छा पूर्ति के
कल्पवृक्ष हुआ करते है
कामधेनु सरीखी
स्वादों की गाय होती है ...
समय के अणु जैसे थिर जाते हैं
नदी के तल पर टिक गई
किसी शिला की तरह
चिर युवा होते हो तुम ...
वहाँ बोटोक्स की सुइयाँ और
वियाग्रा की बूंदे नही मिलती
क्योंकि झुर्रियों और जरावस्था को
स्वर्ग का पता नहीं बताया गया है ...
वहाँ सोलह श्रृंगार रची
मेनका और रम्भा में बसी
सहस्त्रो, अक्षुण्ण यौवन वाली अप्सराएं हैं
सुर है सुरा है
नाद है गन्धर्व-नाद है
ऐश्वर्य है उत्सव है
उत्साह है अह्लाद है ...
राजपुरुषों से जीवन का
राजसिंहासनों पर बैठा
स्वर्ग में
सब सामान है ...
विस्मित हूँ मैं
मृत्यु के बाद भी
जीवन के पार भी
परलोक की रचना करने वाले
मक्कारों की व्यूह रचना पर ...
स्वर्ग में अप्सराएं बसती है
पर स्त्रियाँ नही मिलती ...
है किसी को पता ...
कि ‘उनके’ हिस्से का
वैभव, अह्लाद और स्वर्ग कहाँ है ...
क्यों नही है स्वर्ग में
अप्सराओं के पुरुषांतरण ...
कल्पनाओं में भी नहीं है ...
क्यों नहीं हैं
स्त्रियों के हिस्से के
आमोद की रचनाएं ...
सोचने पर
ढूँढें से भी मुझे
गले मिलने नहीं आते
उनके उत्सव ...
विस्मित हूँ और
क्रोधित भी
कि सृष्टि के
उत्सों की भाषा में
क्यों नहीं रचे गये
स्त्रियों के
निजी सुख ...
~हेमा~
'कथादेश' में जनवरी अंक २०१३ में प्रकाशित ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 01- 11 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
इस बार करवाचौथ पर .... एक प्रेम कविता --.। .
bahut-bhaut aabhaar aapka sangeeta swarup ji ...
Deleteविस्मित हूँ और
ReplyDeleteक्रोधित भी
कि सृष्टि के
उत्सों की भाषा में
क्यों नहीं रचे गये
स्त्रियों के
निजी सुख ...
बिलकुल सही प्रश्न उठाया है आपने
gahri soch ko darshati prastuti.
ReplyDeleteविस्मित हूँ मैं
ReplyDeleteमृत्यु के बाद भी
जीवन के पार भी
परलोक की रचना करने वाले
मक्कारों की व्यूह रचना पर ...निःशब्द भावों को क्या शब्द दूँ
बहुत ही सुंदर शब्दों में लिखी भाव्नामई,प्रेममई अन्तेर्मन के विस्वास को बताती हुई बेमिसाल रचना /बहुत बधाई आपको .
ReplyDeleteबहुत अच्चा लगा आपके ब्लॉग पर आकार ..कुछ अलग
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