समय की
किसी चोर तह में,
दबा कर रखा हुआ
कोई पुराना प्रेम
दबे पाँव
उतर आई
किसी शाम
किसी चोर तह में,
दबा कर रखा हुआ
कोई पुराना प्रेम
दबे पाँव
उतर आई
किसी शाम
ऐसे
मिलता है
जैसे
किसी
कविता की
किताब के
किसी
ख़ास पन्ने पर
डाला हुआ
तीन
कोनों का
एक छोटा
सा
मोड़ -
त्रिकोण ...
किसी भी
दिशा में
अलट-पलट
हो जाने
पर भी
समय की
जाने
कितनी ही
सुरंगों
से
गुजर
जाने पर भी
बना रहता
है
वैसा ही
- त्रिभुजाकार
और अपने
बिन्दुओं पर
उतना ही
तीखा और
धारदार
... !!!
~~हेमा~~
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