मैंने छुटपन में पढ़ा था
और माना भी था कि ...
"भारत यानी इण्डिया एक कृषि प्रधान देश है ...
इसके निवासी
यहाँ की धरती मे
बोए गये बीजो से
उत्पन्न होने वाले
भांति-भाँति के स्वादों में
बहते और जीते है ..."
अब मैं जानती हूँ
और पहचानती हूँ कि ...
"भारत यानी इण्डिया एक भाव प्रधान देश है ...
यहाँ की सत्ताएँ
भाँति-भाँति की भावनाओं पर खेती करती है ...
और यह उमड़ता हुआ देश
भावनाओं की फसलों की लहरों में बहता है ...
कोई भी आता है या जाता है ...
मरता है जीता है ...
कहता है सुनता है ...
जोड़ता है तोड़ता है ...
और यह उसकी लहरों में उठता और गिरता है ...
डूबता और तिरता है ...
जीता और मरता है ...
मारता और काटता है ...
सोता और रोता है ...
प्रलोभनों के सर्कस में ,
भावनाओं की मौतों के कुँए से
खींचा हुआ पानी
हमारी अपनी ही माटी मे
हमारे ही सपनों की कब्रों पर
हमें एक गहरी नींद में खींचता है ...
और पलकों को जबरन मूंदता है ...
मुझे कहना है ...
कि जागो ...
यह जागने का वक़्त है ...
एक बार फिर से
आज़ाद तरानों को गाने का वक़्त है ...
यह प्रभात फेरियों का वक़्त है ...
~~~हेमा~~~
और माना भी था कि ...
"भारत यानी इण्डिया एक कृषि प्रधान देश है ...
इसके निवासी
यहाँ की धरती मे
बोए गये बीजो से
उत्पन्न होने वाले
भांति-भाँति के स्वादों में
बहते और जीते है ..."
अब मैं जानती हूँ
और पहचानती हूँ कि ...
"भारत यानी इण्डिया एक भाव प्रधान देश है ...
यहाँ की सत्ताएँ
भाँति-भाँति की भावनाओं पर खेती करती है ...
और यह उमड़ता हुआ देश
भावनाओं की फसलों की लहरों में बहता है ...
कोई भी आता है या जाता है ...
मरता है जीता है ...
कहता है सुनता है ...
जोड़ता है तोड़ता है ...
और यह उसकी लहरों में उठता और गिरता है ...
डूबता और तिरता है ...
जीता और मरता है ...
मारता और काटता है ...
सोता और रोता है ...
प्रलोभनों के सर्कस में ,
भावनाओं की मौतों के कुँए से
खींचा हुआ पानी
हमारी अपनी ही माटी मे
हमारे ही सपनों की कब्रों पर
हमें एक गहरी नींद में खींचता है ...
और पलकों को जबरन मूंदता है ...
मुझे कहना है ...
कि जागो ...
यह जागने का वक़्त है ...
एक बार फिर से
आज़ाद तरानों को गाने का वक़्त है ...
यह प्रभात फेरियों का वक़्त है ...
~~~हेमा~~~
No comments:
Post a Comment