मेरे भीतर
एक फरियादी सूरज
रोज एक
बहरे आसमान में चढ़ता है ,
गुहार लगाता है ,
सर पीटता है और
बेआवाज दिशाओं के
गमछे से
अपने पसीने को पोंछता हुआ
मेरी विवशताओं के
पश्चिम में ढेर हो जाता है ...
क्या करूँ ...
रोज का यही सिलसिला है ...
~~~हेमा~~~
एक फरियादी सूरज
रोज एक
बहरे आसमान में चढ़ता है ,
गुहार लगाता है ,
सर पीटता है और
बेआवाज दिशाओं के
गमछे से
अपने पसीने को पोंछता हुआ
मेरी विवशताओं के
पश्चिम में ढेर हो जाता है ...
क्या करूँ ...
रोज का यही सिलसिला है ...
~~~हेमा~~~
बहुत खूब!
ReplyDeletehttp://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_29.html
ReplyDelete♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
# फ़रियादी सूरज
बहरा आसमान
बेआवाज़ दिशाओं का गमछा
विवशताओं का पश्चिम
वाह !
अछूते नए बिम्ब !
सुंदर , श्रेष्ठ सृजन !
आदरणीया हेमा दीक्षित जी
अच्छी बौद्धिक कविता है ...
साधुवाद !
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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ReplyDeleteदिनांक 03/02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
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फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ........हलचल का रविवारीय विशेषांक .....रचनाकार--गिरीश पंकज जी
सुन्दर कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteकृपया http://voice-brijesh,blogspot.com पर पधारने का कष्ट करें!
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हेमा....
अनु