सारी दराँतियाँ अगले दो-तीन रोज तक मुँह ढाँप कर किन्ही कोने कतरों में औंधी पड़ी रहेंगी ....
उनकी सारी खुशी हाल-फिलहाल काफूर हो चुकी है ....
उनके दांत अब कुछेक रोज नहीं ही माँजे झारे जायेंगे ....
आसमान को ताकते उसके निहोरे करते , गेंहूँ की ढीठ जबर बालियाँ दो-तीन रोज अपना तन सुखायेंगी ....
और अपने को सिर्फ और सिर्फ तेज कड़क धूप पिलायेंगी ....
खेतों में बंधे पड़े बोझे अगले चार-पांच रोज सिर्फ करवटें बदलेंगे, अपना पीलापन उतारेंगे ....
प्रार्थनाओं में जुड़े रहेंगे खेतों के हाथ और इंतजार की पलके पंख फड़फड़ाएँगी ....
बादल अपनी ईश्वरीय सत्ता के गुमान में मूँछों पर ताव देंगे और गेंहूँ के सुनहरेपन को धर-धर आँखे घुरचेंगे ...
नंदू मुँहअँधेरे पाँच बजे ही खटक गया था आज मेरी नींद की अलसाई आँखों में ..
दरवाजा खोलते ही ,बिना धूप के एक ही रात में सँवलाया गेंहुआ चेहरा दिखा ...
मैं उसे आँख भर देख भी नहीं पायी कि वह फूट पड़ा,"नद्दी पर खेत है तीनई बीघा लुनाए हते, वाऔ अद्धे-पद्धे, जूना नाय बट पाय हते, बोझऔ नाय बंधे है दिदिया , जावे जलदी देखे का बचो, ओलऔ परे हते रात मा ..." एक लीटर दूध भगोने में डालने भर के वक़्त में इतना कुछ बेख्याली में मुफ्त के अखबार की तरह मुझे थमा कर चला गया ...
अपने नपने के साथ वो जैसे सारी अपनी चिंतनाएँ और तनाव मुझ पर उड़ेल गया था ...
आज पहली बार मुझे मिट्टी की मनचीती सोंधी गमक और नम हवा की सिहरन भली नहीं लग रही थी ...
पहले से डरी, भरी बैठी मैं और भारी हो गई ...
फिर नींद नही आई ....
चाय बना कर डरते-डरते पीछे का दरवाजा खोला ...
कुछ तसल्ली आई ,बहुत कम हिस्से में फसल बिछी थी ...
आह ...!! कितने कद्दावर है मेरे गेंहूँ ...
सीधे तने खड़े है ...
अंधी बिगड़ैल आंधी उन्हें झुका नहीं पाई है ...
तेज बारिश की मारे उनकी सख्त पीठ तोड़ नहीं पाई है अभी तक ...
मेरा लाड़ बरबस उमड़ पड़ा है उनकी सख्तजानी और खुद्दारी पर ...
नाम नहीं जानती ,पर पहचानती हूँ सामने वाले पचपनिया दद्दा
अपने बंधे भीगे बोझो के कंधे थामे उन्हें उठा-बैठा कर करवटिया रहे थे ...
जी चाहा कि यह बाउंड्रीवॉल फलाँग जाऊँ ...
भाग कर उनकी जिजीविषा के चरणस्पर्श कर
अपने लिए आशीर्वादों के स्वार्थ माँग लाऊँ ....
मेरा स्वार्थी मैं ...
.... हाल निवासी ग्राम सखौली तहसील तिर्वा गंज जिला कन्नौज कानपुर से लगभग ९८ कि.मी. ...
पिछले बरस के अंतिम रोज यहाँ आने पर मैंने पहली बार देखा था इन्हें ....
गेंहूँ की फसल तब तक जाग कर अपनी घुटुरुवा उमर पा गई थी और अपने बालेपन में जब-तब सर उठाये औचक मुझे ताकती रहती थी ...
वह गहरा हरापन मेरे दिल के अरंग पानी में अपने नन्हे-नन्हे पाँव धर कर चला गया था ...
उनकी गहरी थापे मेरे चौगिर्द नई-नवेलियों की हथेलियों सी चस्पा हों गई थी ...
पूरे जाड़े भर उनकी गुनगुनाहटें ही मेरी हमप्याला और हमनिवाला थी ...
उनकी झलक बिना तो सब सूना था ...
चौमंजिला छत से बिना एक कदम भी चले ...
दौड़ती-फिरती निगाहों ने जाने कितने कुदक्के इस हरेपन पर लगाए होंगे ....
मन मुस्कुराता था और मीलों तक बिछी हरी मुस्कुराहटों पर पसर जाता था ...
पौ फटे इंजन की तेज आवाज जबरन मेरी नींद की जड़ी-कसी सांकले उतार देती ...
मेरी तर्जनी थाम मुझे पिछवाड़े की सीढियों पर खड़ा कर देती....
बम्बे से गिरती मोटी जलधार कहाँ से कहाँ तो नहीं उड़ा ले जाती ...
मन उसके नीचे बैठ अपनी सारी जड़ जट्ट जटाएं फहरा देता , फर-फर ... समाधिस्थ ... ठीक उसके नीचे ...
माटी का तो काम ठहरा... सब कुछ बहने देना और अपने ऊपर गुजर जाने देना ...
सिनेमा के शो के मानिंद तीन घंटे अनवरत इंजन मुझसे बतियाता और जल की फेनिल साफ़ रील प्रवाहित
होती रहती ...
शांत बेहद शांत हरी-भरी थिर दर्शक दीर्घाओं की संकरी
गलियों से ...
घर में मेरी मदद करती अम्मा ने बताया था कि ," बिट्टी इंजन केर पानी मोल केर पानी होवे है "...
मोल का पानी ... कीमत चुकाया हुआ पानी ...
आसमान का पानी ... आस का पानी ...
अम्मा की आँखे अक्सर ही ...
आसमान में बादल के टुकडो की तलाश में
मारी-मारी फिरती थी ... संक्रांति पर बरसा ...
अम्मा की आँखों से हरषा ...
आसों के रंग सूखे मुरझाए पीलेपन में पहुराई का पानी लगा उसे हरिया ही डालते है ...
देखते-देखते मेरी रोटियों का फीका बासा रंग बदल गया ...
सफ़ेद से गहरा हरा हों गया ...
देखो माटी की तिजोरी खुले हाथों ...
कितना तो सोना बाँटती है ...
आज सामने खेत में लगे थ्रेशर से उड़ी धूल मेरे घर के सब सामानों पर बैठी कितनी भली लग रही है ...
सीढ़ियों पर बैठे मेरे सर बैठी गर्द ...
मेरी अपनी सखी ही तो है ...
मेरे सुनहरें गेहूँ मुँह तक बोरियों में भर छलक-छलक
इतरा रहे है ...
जरा देखो तो इनकी सज-धज ...
सारा भूसा झाड़-झाड़ कर तैयार हों रहे है ...
ट्रेक्टर की सवारी पर ...
अपने घर जो जा रहे है ... :))
शानदार ........हेमा जी .......बहुत खूब .......ये वही लिख सकता है जिसने ये जिया हो .........अनुभव किया हो ............इस रचना को साझा करने के लिए ......आपका आभार
ReplyDeletetumhari lekhni ko salaam hema..
ReplyDeleteखेत-खलिहान, गांव के जीवन के सच्चे चित्र। बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट!