पीतल की मजबूत - खूब
मजबूत
खल्लर में डाल कर
कुटनी से कूटी जायेगी ...
खूबसूरत गठीली ...
छोटी इलायची...
नुकीले संवरे नाखूनों से
छील ही डाला जाएगा ...
उसका नन्हा चोला ...
कचरे का डिब्बा
या खौलता पानी
या सिलबट्टे की खुथरी बटन है
उसके हरैले ताजे चोले का ठिकाना ...
हाथ में हाथ फँसाये...
गलबहियाँ डाले
सारे बचुआ दाने ...
छिटका दिये जायेंगे ...
बरसायी जायेंगी
बेमौसम की मारें ...
क्या फर्क है ...
अश्रु गैस के हों हठीले गोले ...
या हों बेशर्म उतरे हुए
पानियों की मोटी पैनी धारें ...
कूट-कूट कर पीसी जायेगी ...
बारीक ,चिकनी खूब ही चिकनी ,
और जबर खुशबूदार ...
अरी ...!!! पग्गल ...!!!
काहे का रोना ...
काहे का कलपना ...
सारा कसूर
तेरे चोले में छिपी
तेरी ही महक का है ...
खल्लर में डाल कर
कुटनी से कूटी जायेगी ...
खूबसूरत गठीली ...
छोटी इलायची...
नुकीले संवरे नाखूनों से
छील ही डाला जाएगा ...
उसका नन्हा चोला ...
कचरे का डिब्बा
या खौलता पानी
या सिलबट्टे की खुथरी बटन है
उसके हरैले ताजे चोले का ठिकाना ...
हाथ में हाथ फँसाये...
गलबहियाँ डाले
सारे बचुआ दाने ...
छिटका दिये जायेंगे ...
बरसायी जायेंगी
बेमौसम की मारें ...
क्या फर्क है ...
अश्रु गैस के हों हठीले गोले ...
या हों बेशर्म उतरे हुए
पानियों की मोटी पैनी धारें ...
कूट-कूट कर पीसी जायेगी ...
बारीक ,चिकनी खूब ही चिकनी ,
और जबर खुशबूदार ...
अरी ...!!! पग्गल ...!!!
काहे का रोना ...
काहे का कलपना ...
सारा कसूर
तेरे चोले में छिपी
तेरी ही महक का है ...
~हेमा~
बहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत.... दिल तक पहुंच रही है कविता
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