अस्पताल का यह संवाद रूपी दृश्य एक स्त्री जीवन की अनावधानता में उस पर
गुजरी कहानी उसी की जबानी कहता है ....
नाम बताओ ?
"फुलगेंदवा "
फुलगेंदवा ?
किसने रक्खा यह नाम ?
"हम्मै पता नाय,
पर कौन रखिये , अम्मै रक्खिन हुईये"
शादी को कितने साल हो गये ?
"हुई गई दुई-चार बरसे"
रजिस्टर पर कैटवॉक करती कलम की चाल कुछ परेशान हुई ,"दुई कि चार ?
"तीन लिखि लेव"
उम्र बताओ ?
"हुईये बीस-बाईस बरस "
इस बार लिखती कलम ने आँखे उठाई और वाक्य ने घुड़का- "ठीक से बताओ
बीस-इक्कीस या बाईस ...?"
फुलगेंदवा का जवाब रिरियाया ,"हम कैसे बतावें, अम्मा कबहूँ बताईनय नाई,
अउर हम्मैं उमर से कछु कामऔ नाय परौ"
खीझी हुई कलम ने घसीट मार उम्र दर्ज की
बीच की इक्कीस बरस .
महीना कब आया था ?
उसने साथ वाली स्त्री का मुँह ताका,"काय जिज्जी तुम्हे कछु याद है "
साथ वाली जिज्जी मुँह दबा के हँसी ," हमें कईसे याद हुईये, तुमाई तारीख तुमई बतावो"
कलम की घिसी और खूब मंझी हुई जबान से सवाल कूदता है,"होली से पहले कि बाद में ?"
एक-दो मिनट सोचा जाता है
और गहरे सूखे कुएँ की तली से खँगाल कर निकाला जवाब गिरता है," होली जली थी ताकै दुई रोज बाद "
तारीख दर्ज हो जाती है .
पति का नाम बताओ ?
अबकी फुलगेंदवा मुँह दबा कर हँसती है अपना सर ढँक लेती है
कलम डपटती है,"जल्दी बताओ ..."
"अरे वोई मोरपंख वाले मुरलीबजैया..."
कलम अटकल लगाती है ,"कृष्ण ..."
"नहीं ...
जाई को कछु बदिल देवो और जाई मे चंद्रमऔ जोड़ दिऔ"
कैटवॉक के परास्त हाथों ने अपना पसीना पोंछा ,कलम ने रजिस्टर पर अपना सर धुना ठंडी साँसे छोड़ी और अटकलपच्चू नाम उचारा ,"किशनचंद"
तेज घाम में झुरा गई फुलगेंदवा खिल उठी चटक-चमक , जामुनी रंगत में जैसे सफ़ेद बेले फूल उठे ," हाँ बस जेई तो है हमारे वो"
कलम ने परचा तैयार करा मार खाने की अभ्यस्त घंटी को थपड़ियाया और सधे हाथों ने परचा डॉक्टर की मेज पर ले जा कर एक अजनबी वजन के नीचे दबा दिया ...
~हेमा~
गुजरी कहानी उसी की जबानी कहता है ....
नाम बताओ ?
"फुलगेंदवा "
फुलगेंदवा ?
किसने रक्खा यह नाम ?
"हम्मै पता नाय,
पर कौन रखिये , अम्मै रक्खिन हुईये"
शादी को कितने साल हो गये ?
"हुई गई दुई-चार बरसे"
रजिस्टर पर कैटवॉक करती कलम की चाल कुछ परेशान हुई ,"दुई कि चार ?
"तीन लिखि लेव"
उम्र बताओ ?
"हुईये बीस-बाईस बरस "
इस बार लिखती कलम ने आँखे उठाई और वाक्य ने घुड़का- "ठीक से बताओ
बीस-इक्कीस या बाईस ...?"
फुलगेंदवा का जवाब रिरियाया ,"हम कैसे बतावें, अम्मा कबहूँ बताईनय नाई,
अउर हम्मैं उमर से कछु कामऔ नाय परौ"
खीझी हुई कलम ने घसीट मार उम्र दर्ज की
बीच की इक्कीस बरस .
महीना कब आया था ?
उसने साथ वाली स्त्री का मुँह ताका,"काय जिज्जी तुम्हे कछु याद है "
साथ वाली जिज्जी मुँह दबा के हँसी ," हमें कईसे याद हुईये, तुमाई तारीख तुमई बतावो"
कलम की घिसी और खूब मंझी हुई जबान से सवाल कूदता है,"होली से पहले कि बाद में ?"
एक-दो मिनट सोचा जाता है
और गहरे सूखे कुएँ की तली से खँगाल कर निकाला जवाब गिरता है," होली जली थी ताकै दुई रोज बाद "
तारीख दर्ज हो जाती है .
पति का नाम बताओ ?
अबकी फुलगेंदवा मुँह दबा कर हँसती है अपना सर ढँक लेती है
कलम डपटती है,"जल्दी बताओ ..."
"अरे वोई मोरपंख वाले मुरलीबजैया..."
कलम अटकल लगाती है ,"कृष्ण ..."
"नहीं ...
जाई को कछु बदिल देवो और जाई मे चंद्रमऔ जोड़ दिऔ"
कैटवॉक के परास्त हाथों ने अपना पसीना पोंछा ,कलम ने रजिस्टर पर अपना सर धुना ठंडी साँसे छोड़ी और अटकलपच्चू नाम उचारा ,"किशनचंद"
तेज घाम में झुरा गई फुलगेंदवा खिल उठी चटक-चमक , जामुनी रंगत में जैसे सफ़ेद बेले फूल उठे ," हाँ बस जेई तो है हमारे वो"
कलम ने परचा तैयार करा मार खाने की अभ्यस्त घंटी को थपड़ियाया और सधे हाथों ने परचा डॉक्टर की मेज पर ले जा कर एक अजनबी वजन के नीचे दबा दिया ...
~हेमा~
:)
ReplyDeleteबढिया
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