Monday, June 4, 2012

सपना ...

क्या तुम्हे पता है ,कि
तुम्हारे घर की
रसोई में ,
एक सपना
रोज चढ़ाता है
गैस पर अपना ही बर्तन
फिर खिडकी से
उचक कर तोड़ लाता है
थोडा सा नीला आसमान
एक टुकड़ा सूरज
एक चुटकी धूप
कुन्ने के पीपल की
हरी-पीली भरी पत्तियाँ
मुटठी भर उडती चिड़ियाँ
चौराहे की आमद-रफ्त
फिर सब के सब खौलते है
बर्तन के पानी में
और बस
बन कर उड़ जाते है 'भाप' ....
तुम्हारी  दुनियाँ के
अपने आसमान में ... !!



                                  ~ हेमा ~

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1 comment:

  1. खूबसूरत अह्साशों से भरी बेहतरीन कविता प्रस्तुत की है आपने

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