कभी-कभी
अचानक ही
चुप के शिकंजो में फंसे
शांत बैठे
खामोश परिंदे
बेचैन हो उठते है
फडफडाने लगते है
उनके प्राण
पंखो की तड़प से
फूट पड़ते है अक्षर
और ,
नीले आसमान की हथेली
अचकचा कर
खोल बैठती है
अपनी आँख
जर्द सफेदी का समेकन भी
मसल डालता है
सम्मोहित आँखों का
मीलों लंबा
उनींदापन
और सब कुछ
जाग उठता है
ख्वाहिशो की
मरी कोख
फिर जी उठती है
दीवारों पर बिछा
धूप का अक्स
लपेट देता है
अपनी बाहों का
पुकारा हुआ गुनगुनापन
सिफ और सिर्फ
मेरे चारों ओर ,
पर सुनो सखी ,
ऐसा कभी-कभी ही होता है कि
खामोश परिंदे भी
बेचैन हो उठते है .....
~ हेमा ~
अचानक ही
चुप के शिकंजो में फंसे
शांत बैठे
खामोश परिंदे
बेचैन हो उठते है
फडफडाने लगते है
उनके प्राण
पंखो की तड़प से
फूट पड़ते है अक्षर
और ,
नीले आसमान की हथेली
अचकचा कर
खोल बैठती है
अपनी आँख
जर्द सफेदी का समेकन भी
मसल डालता है
सम्मोहित आँखों का
मीलों लंबा
उनींदापन
और सब कुछ
जाग उठता है
ख्वाहिशो की
मरी कोख
फिर जी उठती है
दीवारों पर बिछा
धूप का अक्स
लपेट देता है
अपनी बाहों का
पुकारा हुआ गुनगुनापन
सिफ और सिर्फ
मेरे चारों ओर ,
पर सुनो सखी ,
ऐसा कभी-कभी ही होता है कि
खामोश परिंदे भी
बेचैन हो उठते है .....
~ हेमा ~
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
मन की बेचैनी भी झलक रही है .... खूबसूरत रचना
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबैचनी बोलती है ... नेला आसमां ... धूप का अक्स भी कुछ कहता है जो और कुछ नहीं पास बैचेनी होती है ...
ReplyDelete.......इस उत्कृष्ट रचना के लिए ... बधाई स्वीकारें...!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात है
बहुत -बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
:-)
बहुत -बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
ReplyDeleteजर्द सफेदी का समेकन भी
ReplyDeleteमसल डालता है
सम्मोहित आँखों का
मीलों लंबा
उनींदापन...
सुंदर रचना...
सादर।
bahut sunder likha hai.....
ReplyDeleteअपनी बाहों का
ReplyDeleteपुकारा हुआ गुनगुनापन
सिफ और सिर्फ
मेरे चारों ओर ,
पर सुनो सखी ,
ऐसा कभी-कभी ही होता है कि
खामोश परिंदे भी
बेचैन हो उठते है .....
बेहतर भावाभिव्यक्ति ...!