अपनी यायावरी की अटैची खींचते हुए अकेली यात्रा पर निकली एक विवाहित स्त्री इतना बड़ा अजूबा क्यों होती है ...
विवाहित स्त्रियों को घूमने के लिए बाहर निकलने के लिए एक साथी और कारण जरूरी क्यों है ...
यायावरी का फल भी निषिद्ध फल है चखना मना है ...
पूरा फल खा जाना तो महाअक्षम्य अपराध है ...
चखने वाली स्त्रियों के साथ और सर पर ऐसे जबरन खोज कर थोपी जाती तमाम समस्याओं के चंद नमूने ...
- लगता है पति से बनती नही है ...
- पति का कोई चक्कर होगा ...
- अकेली है बच्चे हुए नहीं लगता है ... बेचारी ...
- पति की चलती नहीं होगी ... बड़ी तेज-तर्रार दिखती है ...
- विवाहिता की तरह तो रहती नही है ... एक भी ढंग-लक्षण वैसे नहीं दिखते ...
-कहीं तलाक का झमेला तो नहीं है ...
आदि-आदि-आदि ...
जैसे हरि अनंत वैसे कारण खोज कथा-गाथा अनंत ...
क्यों भई ... !!! विवाहित स्त्रियाँ स्वतंत्र इच्छाएँ नहीं रख सकती है ...
क्यों अकेले देश-दुनियाँ नहीं देख सकती है ...
क्यों परिवार, पति, बच्चों, रिश्तों-नातों से पृथक भी उनकी कुछ स्वतंत्र इच्छाएँ नहीं हो सकती है ...
हो सकती है ... है ... और होनी भी चाहिए ...
माँ, बहन,बेटी, पत्नी या अन्य किरदारों की जिम्मेदारियों और ममत्व से परे ...
स्वयं 'अपना' किरदार जीने की जिम्मेदारी सर्वप्रथम और सर्वोपरि है ना ...
चंद लम्हे बिना किसी किरदार के ...
अपने साथ अपनी यायावरी में ...
सच होने चाहिये चंद लम्हे अपने साथ अपनी यायावरी में
ReplyDeleteये सब चक्कर छोड़कर अब घुमक्कड़ी के किस्से लिखे जायें। :)
ReplyDeleteनिश्चित रूप से लिखे जायेंगे अनूप जी ... :)
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