१.
चुप की जमीन पर रहने वाले ही
चुप्पियों का पता देते है ...
२.
चुप्पी ध्वनि की निद्रा है ...
मौन स्वर का जागरण ...
३.
और जागरण से पूर्व ...
उन्ही चुप्पियों की हथेलियों में
कुछ स्वप्न भी तो रहते ही है ...
हाँ ... वही तो है
जो जागरण का स्वर बुनते है ...
४.
देखो यह कितनी अच्छी सी बात है, कि
ध्वनियों की निद्रा के घर में ही सही, पर
स्वप्नों का हँसना -
उनके मरने से कहीं ज्यादा
आसान हुआ बैठा है ...
~~हेमा~~
चुप की जमीन पर रहने वाले ही
चुप्पियों का पता देते है ...
२.
चुप्पी ध्वनि की निद्रा है ...
मौन स्वर का जागरण ...
३.
और जागरण से पूर्व ...
उन्ही चुप्पियों की हथेलियों में
कुछ स्वप्न भी तो रहते ही है ...
हाँ ... वही तो है
जो जागरण का स्वर बुनते है ...
४.
देखो यह कितनी अच्छी सी बात है, कि
ध्वनियों की निद्रा के घर में ही सही, पर
स्वप्नों का हँसना -
उनके मरने से कहीं ज्यादा
आसान हुआ बैठा है ...
~~हेमा~~
क्या baat
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति.सुन्दर रचना .
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