Tuesday, January 14, 2014

आसमां पर पीठ टिकाए एक जिद ...

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कहो और कहते रहो कि
प्रेम का रँग नीला है
कि आसमान है उसका वितान ...
तुम चाहो तो जिदिया सकते हो ...
जिदियाने पर हक है तुम्हारा ...

पर जिदियाने से कुछ होता नहीं है
जबकि तुमने सुन लिया था ...
कि मैंने कहा था ना
कि प्रेम का रँग हरा होता है ...

आखिर इश्क के रँग के ताउम्र
हरे रहने में कोई बुराई तो नहीं ...

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.... रात गये ठहरी हुई एक जिद ...
 
 
~~हेमा~~

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