Saturday, April 7, 2012

यूँ ही बस ऐसे ही................

इंतज़ार ...
हाँ नहीं तो ...
और क्या ...
इंतज़ार की कुर्सी पर 
टेका दिये एक धुन ...
एक टुकड़ा धूप ......
आठ दाने चीनी के ....
एक पता तुलसी का ......
अहो !
लहकती त्रिनेत्री छवि ..... 
और लो ......
अंगूठे के जिदियाए सिरे ने 
खीझ कर....हाँ खीझ कर ही तो ....
'तुम्हारे' माथे पर टिपिया दी .......
अपनी जिद्द की एक खीझी हुई लोहित टीप .....
चलो भी... अब...
इस दिन को भी उठाएं ......
अपनी मुस्कुराहटों की उँगलियों पर ......
एक पंचाग्नि ताप उगाएँ  ......
और ....
हथेलियों के स्टूडियो पर ......
चुपचाप... बेआवाज़
चलो .... इसे भी बैठा ही आएं ....


~हेमा~    

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9 comments:

  1. वाह.........................

    साधारण सोच के परे.....................

    लाजवाब रचना.

    अनु

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  2. Atti Umda Prastuthi....Badahai ho.

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  3. चलो भी... अब...
    इस दिन को भी उठाएं ......
    अपनी मुस्कुराहटों की उँगलियों पर ......
    एक पंचाग्नि ताप उगाएँ ......
    और ....
    हथेलियों के स्टूडियो पर ......
    चुपचाप... बेआवाज़
    चलो .... इसे भी बैठा ही आएं ....उत्कृष्ट भाव

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  4. http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2012/05/blog-post_04.html

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  5. चलो भी... अब...
    इस दिन को भी उठाएं ......
    अपनी मुस्कुराहटों की उँगलियों पर ......
    एक पंचाग्नि ताप उगाएँ ......
    और ....
    हथेलियों के स्टूडियो पर ......
    चुपचाप... बेआवाज़
    चलो .... इसे भी बैठा ही आएं ....

    सुन्दर आह्वान किया आपने...आभार.

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  6. चलो भी... अब...
    इस दिन को भी उठाएं ......
    अपनी मुस्कुराहटों की उँगलियों पर ......
    एक पंचाग्नि ताप उगाएँ ......
    और ....
    हथेलियों के स्टूडियो पर ......
    चुपचाप... बेआवाज़
    चलो ... इसे भी बैठा ही आएं ...
    अनुपम भाव संयोजित किए हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...

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  7. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
    फुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये

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