Thursday, November 22, 2012

बिटिया का जाना ...

ड्राइंगरूम के सोफे के नीचे से झांकती 
एक चटक बैगनी स्लीपर 
फ्रिज के डोर मे ढनकती चौथाई बची स्प्राइट ...
मुड़ी-तुड़ी पन्नी से अपने दांत झलकाती अधखाई चाकलेट ...
जिस-तिस कोने से झांकती 
उसकी बनाई हुई सपनीली,
 पनीले रंगों वाली कचबतिया सी चित्र लेखाएँ ...
डिब्बे में बचा थोडा सा अनमना कोर्नफ्लेक्स ...
दूध वाले के नपने के नीचे
घटा हुआ दूध का अनुपात ...
सुबह से अनछुआ
अपने गैर कसे टेढ़े मुँहवाला जैम ...
लटके हुए फीके चेहरे वाला टोस्टर ...
फ्रीजर में खाली पड़ी आइस ट्रे ...
पीछे छूटी एक अदद स्कर्ट ...
एक बिना पेन का ढक्कन ...
सब के सब मिल कर
मेरी  उदासियों को बेतरह मुँह चिढ़ा रहे है ...
बहुत  कोशिशों के बाद भी रहती हूँ नाकाम ...
कोई भी चीज़ उसकी खिलखिलाहट की
अनुपस्थिति को भर नहीं पाती  है ...
सोनचिरैया फिर से उड़ गई है ना ...
बस ऐसे ही मेरी
सोनचिरैया आती है जाती है और
अपने दो-चार पँख छोड़ कर
फिर से उड़ जाती है ...


~~~हेमा~~~

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2 comments:

  1. बहुत सुंदर .... बिटिया के जाने से ऐसा ही लगता है ...

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  2. बहुत ही खूबसूरती सी समेट लिया हर अहसास को आपने इस अभिव्‍यक्ति में

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