यह भव्य मंदिर बुंदेलों की राजधानी ओरछा स्थित चतुर्भुज मंदिर है भक्तों से सूना ...
घंटनाद एवं आरती-पूजन ध्वनियों से बिलकुल अछूता सा निर्जन ...
यहाँ जाने पर मुझे सुबह-सुबह पुजारी भी नहीं मिले इसमें स्थापित विष्णु प्रतिमा तकरीबन उपेक्षित सी ही है ...
इस मंदिर के ठीक बगल में रनिवास है ... रानी गनेशी बाई / रानी गनेश गौरी का रनिवास ...
यह रनिवास ही वर्तमान में राम राजा मंदिर ओरछा के नाम से विख्यात है ...
चतुर्भुज मंदिर अपने बनने के पश्चात लम्बे अरसे तक बिना किसी देव-प्रतिमा एवं पूजा-अर्चना के यूँही पड़ा रहा उपेक्षित ... राजाओं की हठधर्मिताओं की एक कथा है जो मैंने वहाँ सुनी और उसकी परिणति भी देखी ...
कहते है कि रानी गनेशी बाई भगवान् राम की बहुत बड़ी भक्त थी वो उनके अराध्य थे ... और वह प्रत्येक वर्ष अयोध्या उनके दर्शनों के लिए जाया करती थी ...
परन्तु ओरछा नरेश मधुकर शाह कृष्ण भगवान् के परम भक्त थे वो उनके अराध्य थे और वह प्रत्येक वर्ष उनके दर्शनों हेतु मथुरा-वृन्दावन जाया करते थे ...
तो एक वर्ष ओरछा नरेश हठ पर उतरे कि रानी उनके साथ वृदावन चले उनके अराध्य कृष्ण की अराधना और दर्शनों हेतु ...
रानी ने कहा कि वह अपना अयोध्या जाने का क्रम भंग नही करना चाहती है और वे अपने इष्ट के दर्शनों हेतु अयोध्या अवश्य जायेंगी ... रानी के ऐसे स्वतंत्र और स्वायत्त वचन राजा को क्रोधित करने हेतु पर्याप्त थे ... उन्होंने रानी से कहा ठीक है जाओ और अब तुम अयोध्या ही जाओगी ... परन्तु वहां से ओरछा तब ही वापस आ सकोगी जब अपने इष्ट राम को अपनी गोद में बाल रूप में ले कर आओगी ...
ओरछा नरेश का मधुकर शाह का यह फरमान रानी के लिए एक प्रकार से उनसे सम्बन्ध-विच्छेद एवं ओरछा से निकाला ही था ...
कहते है दुखी एवं बेहद निराश रानी अयोध्या चली गई और वहां उन्होंने सरयू के किनारे कठोर तप किया परन्तु उनके इष्ट न आज प्रगट हुए न कल ...
जीवन, जगत और ओरछा तीनों से ही लगभग निष्काषित हताश रानी अपने प्राण त्यागने हेतु सरयू में कूद गई ...
कहा जाता है कि उन्हें नदी के प्रवाह में से निकालने के लिए जो लोग कूदें उन्होंने रानी को भगवान् राम के बालक रूप के साथ पाया और दोनों को बाहर निकाला ...
कहते है कि बाल राम ने रानी के साथ ओरछा आने की कुछ शर्ते रखी थी जिनमें से एक यह थी कि वह ओरछा में रहेंगे तो वही ओरछा में 'राम-राजा' कहलायेंगे अर्थात ओरछा के नरेश राम-राजा ...
दूसरी यह कि रानी एक बार उन्हें जहाँ रख देंगी वह वही आसीन हो जायेंगे ...
रानी उन्हें अपने साथ लेकर पूरी शान से ओरछा वापस आई और ओरछा नरेश से मिली ... ओरछा नरेश उनके अराध्य के बाल रूप पर और उनकी निष्ठा के समक्ष नत हुए ...
उन्होंने रानी से कहा कि मैं एक भव्य मंदिर प्रभु राम की स्थापना हेतु बनवाता हूँ तब तक तुम इन्हें रनिवास में रहने दो ...
रानी प्रसन्नता पूर्वक राजी हो गई ... प्रभु की पूजा-अर्चना और भोग रानी के शयनकक्ष में होने लगे ...
भव्य चतुर्भुज मंदिर बनकर तैयार होने पर प्रभु अपने वचनानुसार अपने प्रथम आसीन गृह से टस से मस नही हुए ...
ओरछा नरेश की सत्ता भव्यता के प्रतीक चतुर्भुज मंदिर को कभी भी आबाद कराने में समर्थ न हो सकी ...
ओरछा नरेश की प्रभुता सम्पन्नता उनके शयनकक्ष को ही उसी देव का होने से न रोक सकी जिनकी आराध्या होने के लिए उन्होंने अपनी राजमहिषी को अपने शासित राज्य से लगभग निष्काषित कर दिया था ...
जिस रनिवास एवं शयनकक्ष में सिर्फ ओरछा नरेश ही प्रवेश पा सकते थे ... उस समय के चलन को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि परिंदे को भी रनिवास में पर मारने से पहले राजाज्ञा लेनी पड़ती होगी ... वहाँ ओरछा के राम-राजा बैठ गए थे ... और उनके जरिये अति साधारण प्रजाजन भी प्रवेश पा गए थे ... वहां अब ओरछाधीश राम-राजा सरकार अपनी सम्पूर्ण सत्ता में विराजे थे/है ...
मुद्दा-ए-विमर्श : कौन जाने शर्ते प्रभु की थी या फिर प्रभु की ओट में ओरछा नरेश की राजाज्ञा से
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पीड़ित रानी की ...
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ओरछा नरेश मधुकर शाह जी और रानी गणेश कुंवरी जी की श्रद्धा व दृढ संकलप को नमन करता हूँ. जय हो जय हो ओरछाधीश , जय हो राम राजा सरकार - भंवर बोसाना, शास्त्री नगर, सीकर, राजस्थान
ReplyDeleteओरछा नरेश मधुकर शाह जी और रानी गणेश कुंवरी जी की श्रद्धा व दृढ संकलप को नमन करता हूँ. जय हो जय हो ओरछाधीश , जय हो राम राजा सरकार - भंवर बोसाना, शास्त्री नगर, सीकर, राजस्थान
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