ब्लॉग के मोडरेटर लोग काहे बात के लिए होते है ...
खाली लेखकों से तमाम विषयों पर लेखन सामग्री जुटाने और अपने ब्लॉग पर चेंपने भर के लिए ...
जो मिला जैसा मिला चेंप दिया और परोस दिया ... पाठक तो पढने को तरसा-टपका और भूखा बैठा है न ... और आप उस पर उसकी थाली में खाना फेंकने का अहसान करते है न ...
अक्सर ही वहां प्रस्तुत आलेखों, कविताओं,कहानियों, अनुवादों में वर्तनी और व्याकरण की बेहद गंभीर त्रुटियाँ विद्यमान होती है ... जो उन्हें पढने के प्रवाह और अर्थान्वयन दोनों में व्यवधान उत्पन्न करती है ...
क्या किसी के मन में यह सवाल नहीं उठता कि नेट के द्वारा उच्च तकनीक से संचालित इन ब्लोग्स और ई-पत्रिकाओं में ऐसा नही होना चाहिए ... यह कोई एक बार प्रिंट सो प्रिंट वाला मुद्दा नही है ... यह किसी भी समय अपने को संपादित कर सकते है ... पर नही करते है क्यों ...
यह एक बहुत बड़ा सवाल है कि इन्हें पाठकों की और अशुद्ध पाठ के अपने ही ब्लॉग पर मौजूद होने की जरा भी चिन्तना क्यों नही होती ...
भाषा और मात्राऔं की त्रुटियां तो कोई मायने ही न रखती हों जैसे.. और पुनरावलोकन तो कभी कोई करता ही नहीं... एक बड़ा सवाल यह है कि लेखक के चूकने पर सुधार के सारे अधिकार और दायित्व किसके होंगे ...
उस सामग्री को अपने उस स्थापित किये ब्लॉग पर चिपकाने से पूर्व क्या उनका इतना भी दायित्व नही बनता कि वह लेखकों द्वारा की गई वर्तनी और व्याकरण की बेहद मामूली, प्रत्यक्ष और प्रथम दृष्टया ही दिखाई पड़ती त्रुटियों को भी दूर करने का साधारण सा प्रयास कर ले ...
बस मोडरेटर हो जाना और ब्लॉग में सामग्री लगाना भर उनकी अधिकार सीमा है ...
ब्लॉग एक बड़ी और स्थापित पत्रिका से कहीं अधिक बड़ी भूमिका अदा कर सकते है ...
जो ब्लॉग साहित्यिक पत्रिकाओं की तरह चलाए जा रहे है उनके दायित्व साहित्यिक सरोकारों से परे नहीं हो सकते ...
एक बार सोच और समझ कर देखे कि उनकी यह लापरवाही पाठक और साहित्य के साथ क्या कहलाएगी ...
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