Saturday, April 19, 2014

आज हमारे शब्दों पर भाषा पर खूब जाएँ ... जो लिखा है उसके एक-एक शब्द का अर्थ वो ही है जो आपने समझा है ...




एक लेखक और लेखिका साथ खड़े हो कर दो चार बाते कर लिए ...

एक प्रकाशक और लेखिका साथ खड़े हो कर बतिया और दो चार बार मुस्कुरा लिए ...

एक लेखिका अपने मित्रों और पाठकों से हाथ मिला ली एकाध लोगो से गले मिल ली ...

एक नवोदित लेखिका अपने दूर दराज के शहर से आये लेखक मित्र के लिए खाना ले आई ...

पहली बार मिले फेसबुक लेखक-लेखिकाएं साथ बैठ कर चाय-शाय पी लिए ...

प्रकाशक-लेखक-फेसबुक मित्रों के साथ लेखिकाओं ने मुस्कुरा कर अगल-बगल खड़े हो कर कंधे पर हाथ रख कर तस्वीरें खिंचवा ली ...

बरसों से सोशल मीडिया पर रोज दिन में पिच्चासी बार एक दूसरे से मिलने और जीवन की हर छोटी बड़ी बात में साझीदार होने के बाद मिलने पर हुलस कर हाथ थाम लेना ... या उमड़ कर गले लग जाना ...

यह सब आपसे देखा नहीं न जा रहा है तो अपनी आँखे बंद कर लीजिये ...

आप बड़े साहित्यकार होंगे अपने घर के ...

अपनी इतर संबंधों और दोनों के बीच कुछ तो चल रहा है वाली गलीज सोच की नाक दो इंसानों के खूबसूरत संबंधों में स्त्री-पुरुष के खाके के नाम पर न ही घुसाए तो बेहतर होगा ...

दो लोगो को दो बेहतरीन इंसानों की तरह खुल कर खिल कर मिलने दें ...

और हाँ यदि आप अपनी सोच बदलेंगे नहीं और यह इतर संबंधों की खिचड़ी पकाने वाली और अपनी गपडचौथ का रायता फैलाने की ठेकेदारी उठाने वाली नाक की लम्बाई कम नहीं करेंगे और ऐसे ही घुसाते रहेंगे ...

तो बताए देते है जिस रोज मेरे हत्थे चढ़ गए ... आपकी यह ठेकेदारी वाली नाक तोड़ देंगे और पटक कर मारेंगे सो अलग ... वो भी फेसबुक की पोस्ट पर आभासी तौर पर नहीं ... दुनियां के 'मेले' में बीचों-बीच ...
दुनियां में अपने दम पर कायम है ... आपके पिताजी का दिया नहीं खाते है ... महसूस कर रही है...

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