यह आँखों के आगे
डाला है किसने
मुटठी में भरा
अपने अंतर का अँधेरा,
क्यों , कहते क्यों नहीं
कौन हो तुम ?
चाहते हो ,
मात्र चूमने के लिए
दिखते रहे मेरे ,
तुम्हारे स्पर्श से हीन ओंठ
और घुप्प अँधेरे में
उजाले को तरसती
हृदय में बुन डालूँ
तुम्हारी इच्छा के
जाल की जमीन का
बेसब्र आसरा
सुनो -
जाओ तुम
कहीं और
ले कर अपनी
यह अंध तलाश
मैं तुम्हारी अँधेरी राह
टटोल नहीं सकती
मात्र चूमे जाने
और बाहों में कसे जाने का अँधेरा
आँखों में
उजालो का घर रचे मैं
अस्वीकार करती हूँ
तुम्हारे स्वप्नों में भी
व्यक्ति नहीं
सखी नहीं
मात्र नारी देह समझा जाना
समझ लो -
यही है प्रारंभ
तुम्हारी चाहत
और मेरी चाहत के
टकराव बिंदु का !!
***हेमा***
डाला है किसने
मुटठी में भरा
अपने अंतर का अँधेरा,
क्यों , कहते क्यों नहीं
कौन हो तुम ?
चाहते हो ,
मात्र चूमने के लिए
दिखते रहे मेरे ,
तुम्हारे स्पर्श से हीन ओंठ
और घुप्प अँधेरे में
उजाले को तरसती
हृदय में बुन डालूँ
तुम्हारी इच्छा के
जाल की जमीन का
बेसब्र आसरा
सुनो -
जाओ तुम
कहीं और
ले कर अपनी
यह अंध तलाश
मैं तुम्हारी अँधेरी राह
टटोल नहीं सकती
मात्र चूमे जाने
और बाहों में कसे जाने का अँधेरा
आँखों में
उजालो का घर रचे मैं
अस्वीकार करती हूँ
तुम्हारे स्वप्नों में भी
व्यक्ति नहीं
सखी नहीं
मात्र नारी देह समझा जाना
समझ लो -
यही है प्रारंभ
तुम्हारी चाहत
और मेरी चाहत के
टकराव बिंदु का !!
***हेमा***