मेरे भीतर
एक फरियादी सूरज
रोज एक
बहरे आसमान में चढ़ता है ,
गुहार लगाता है ,
सर पीटता है और
बेआवाज दिशाओं के
गमछे से
अपने पसीने को पोंछता हुआ
मेरी विवशताओं के
पश्चिम में ढेर हो जाता है ...
क्या करूँ ...
रोज का यही सिलसिला है ...
~~~हेमा~~~
एक फरियादी सूरज
रोज एक
बहरे आसमान में चढ़ता है ,
गुहार लगाता है ,
सर पीटता है और
बेआवाज दिशाओं के
गमछे से
अपने पसीने को पोंछता हुआ
मेरी विवशताओं के
पश्चिम में ढेर हो जाता है ...
क्या करूँ ...
रोज का यही सिलसिला है ...
~~~हेमा~~~