Saturday, April 7, 2012

यूँ ही बस ऐसे ही................

इंतज़ार ...
हाँ नहीं तो ...
और क्या ...
इंतज़ार की कुर्सी पर 
टेका दिये एक धुन ...
एक टुकड़ा धूप ......
आठ दाने चीनी के ....
एक पता तुलसी का ......
अहो !
लहकती त्रिनेत्री छवि ..... 
और लो ......
अंगूठे के जिदियाए सिरे ने 
खीझ कर....हाँ खीझ कर ही तो ....
'तुम्हारे' माथे पर टिपिया दी .......
अपनी जिद्द की एक खीझी हुई लोहित टीप .....
चलो भी... अब...
इस दिन को भी उठाएं ......
अपनी मुस्कुराहटों की उँगलियों पर ......
एक पंचाग्नि ताप उगाएँ  ......
और ....
हथेलियों के स्टूडियो पर ......
चुपचाप... बेआवाज़
चलो .... इसे भी बैठा ही आएं ....


~हेमा~    

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