वो रात-रात रोती है
उनकी खुली आँखे नहीं सोती है
वो कहती है
अब ये सपनो में नहीं खोती है
अम्मा के पेट के तीनो बलों की नरमी में
उंगलिया फेरते
मैं उनसे और चिपकती हूँ
सुनती हूँ अनकहा
देखती हूँ अनदेखा
कमरे,रसोई ,आँगन
बर्तन, जूना ,मंजना
नौकर - चाकर
घर -दुआर
रूपये,गहना -गुरिया
गाड़ी,ड्राईवर
देवर-देवरानियां
नाते-पनाते
भूख-प्यास
सब कुछ तो है
और बिल्कुल वैसे ही है पर
अम्मा पल-पल कहती है ....
पति नहीं मेरा सुख चला चला गया है....
वृथा है जीवन .....
अब काहे का सुख ....
मैं उनसे और चिपकती हूँ
पर वो नहीं चमकती है
....दो बरसो से
अम्मा बिल्कुल नहीं मिलती है
बस मिलता है दुःख ....
मुझे अम्मा के गले लगना है
और अब मैं पी जाना चाहती हूँ
उनके साथ के छूटे का दुःख .....
कहना चाहती हूँ
देखो मैंने तुम्हारे लिए
अपने पास बचा रखे है
कुछ थोड़े बहुत सुख ....
सिर्फ तुम्हारे अपने लिए ...
तुम्हारे अपने सुख ....
***हेमा***
उनकी खुली आँखे नहीं सोती है
वो कहती है
अब ये सपनो में नहीं खोती है
अम्मा के पेट के तीनो बलों की नरमी में
उंगलिया फेरते
मैं उनसे और चिपकती हूँ
सुनती हूँ अनकहा
देखती हूँ अनदेखा
कमरे,रसोई ,आँगन
बर्तन, जूना ,मंजना
नौकर - चाकर
घर -दुआर
रूपये,गहना -गुरिया
गाड़ी,ड्राईवर
देवर-देवरानियां
नाते-पनाते
भूख-प्यास
सब कुछ तो है
और बिल्कुल वैसे ही है पर
अम्मा पल-पल कहती है ....
पति नहीं मेरा सुख चला चला गया है....
वृथा है जीवन .....
अब काहे का सुख ....
मैं उनसे और चिपकती हूँ
पर वो नहीं चमकती है
....दो बरसो से
अम्मा बिल्कुल नहीं मिलती है
बस मिलता है दुःख ....
मुझे अम्मा के गले लगना है
और अब मैं पी जाना चाहती हूँ
उनके साथ के छूटे का दुःख .....
कहना चाहती हूँ
देखो मैंने तुम्हारे लिए
अपने पास बचा रखे है
कुछ थोड़े बहुत सुख ....
सिर्फ तुम्हारे अपने लिए ...
तुम्हारे अपने सुख ....
***हेमा***