चारो ओर
बहता हुआ
लाल-लाल रक्त
इधर-उधर तडपती
दर्द से छटपटाती
हथेलियों को भीचती-खोलती
फैली उंगलियों को देख
जाने कहाँ
आधार को खोजती
लाक्षागृह में तपती
आस-पास फैले मरघट को
साँसों में लिए
मौन चीत्कार की
मुमुक्षा समेटती
अपनी जाग्रत-सुषुप्त
सामर्थ्य को टटोलती
विनाश के जयघोष में
सृजन की मृत्यु को देखती
विध्वंश के मध्य
अग्नि फूल चुनती
सृष्टि की एक माँ
अपनी कोख में
सूर्य के अंकुरों को पालती !!
***हेमा***