प्रदक्षिणा
Sunday, June 26, 2011
कोई तो बताए
क्या बाँध कर रक्खूं
अपनी चोटी के फीतों में
कमरों से झाड़ी धूल
तोड़े हुए
मकड़ी के घर या
कुचली हुई उनकी लाशें
रसोई में पकते
खाने की महक
या बेकार में पढ़ी
कानून की किताबो की धाराए
बताओगे नहीं कभी क्या
बाँध कर रक्खू क्या
अपनी चोटी के
फीतों में !!
***हेमा***
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1 comment:
अमित
June 26, 2011 at 8:09 PM
this very much speaks of the mundane tasks of a woman...
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