यह प्रारंभ के दिवस है
धूप फेंकी है सूरज ने
मेरी जड़ी खिड़की पर छपाक,
चौड़ी मुसी सफेदी
किनारी पतली लाल
अंध केशो पर टिकी
तुमको कैसे मालुम
अन्दर बेचैन अंधेरो में
रौशनी की भूख
जाग आई है
सुनो, देखो
उतार फेंको
कमल के फूलो का खूबसूरत
यह आबनूसी चोला
सुनो-
इस हलकी चमक से
उठती ध्वनियाँ
स्थगित मत कर निरखना
धूप की मुस्कान
साध तू व्याप्त आज्ञापकों का अराध्य
यह प्रारंभ के दिवस है
तुमको नहीं मालुम
यह मेरे - तुम्हारे
वशीकरण के दिन है !!
*** हेमा ***
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